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जोत दर्शन से मिटते हैं शोक-संताप

करणी माता

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मंदिर पर आकर न सिर्फ मां मंशापूर्ण के दर्शनों लाभ मिलता है बल्कि यहां से पिछोला झील तथा अरावली की पहाड़ियों पर जब सूर्यदेव अस्तगामी होते हैं तो मंदिर में मां की छवि और होने वाली दिव्य आरती एक अद्भुत नजारा प्रस्तुत करते हैं।

दुर्गा आराधना के पर्व नवरात्रि में माता पार्वती के अंगों से बने सिद्धपीठ के दर्शनों का अपना ही महत्व है। देश के 52 पीठ ऐसे हैं जहां पर दर्शन करना सौभाग्य की बात माना जाता है, लेकिन कुछ पीठ या मंदिर ऐसे भी हैं जो माता सती के अंगों के गिरने से नहीं बने। यह पीठ ऐसे हैं जो या स्वयं सिद्ध हैं या फिर भावानात्मक रूप से बनाए गए हैं। इन पीठों में राजस्थान के उदयपुर में बना मंशापूर्ण करणी माता का मंदिर कम चमत्कारी नहीं है। माना जाता है कि यहां पर मां की जोत के दर्शन मात्र से ही जीवन के तमाम शोक-संताप कट जाते हैं।

शूरवीरों की धरती राजस्थान में झीलों की नगरी उदयपुर। यहां के सूर्यवंशी प्रतापी राजा जहां अपनी आन-वान-शान के लिए जाने जाते हैं, वहीं वह अपनी बात रखने के लिए अपनी जान पर भी खेल जाते थे। उदयपुर और चित्तौड़गढ़ के विषय में इतिहास में इतना कुछ है कि उसके विषय में कुछ भी कहना सूर्य को दीया दिखाना है।

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उदयपुर सिसोदिया सूर्यवंशी राजाओं राज्य रहा है। यहां के राजा सूर्यदेव के वंशज थे, इसलिए वह बिना उनके दर्शन किए भोजन प्राप्त नहीं करते थे। कहते हैं इन्हीं राजाओं में से एक महाराजा कर्ण सिंह का विवाह बीकानेर के देशनोक के राजा की पुत्री से हुआ था और वह करणी माता के मंदिर के दर्शन के बिना भोजन प्राप्त नहीं करती थीं। उनकी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए महाराजा ने यहां की मगरा पहाड़ियों पर माता करणी का मंदिर निर्माण कराया और इसके लिए वह माता करणी की जोत बीकानेर से लाए। मां करणी का यही मंदिर मंशापूर्ण करणी माता के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मंशापूर्ण करणी माता, मां दुर्गा का अवतार हैं और उनके दर्शनों के साथ ही जब हम मां करणी की जोत के दर्शन करते हैं तो हमारे पाप-संताप स्वयं कट जाते हैं।

उदयपुर का मंशापूर्ण करणी माता मंदिर लगभग चार सौ वर्ष पूर्व, सन.1620 के दशक में यहां की मगरा की पहाड़ियों पर बना। यहां पर पहुंचने के लिए लगभग पौने चार सौ सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है। यहां पर माता अपने जिस रूप में विराजमान हैं,वह रूप माता दुर्गा के कई अवतारों में प्रकट होता है। माता के इसी दुग्ध मनमोहक रूप के दर्शनों के बाद महारानी भोजन प्राप्त करती थीं। मां के दर्शनों के लिए ऐसे तो पूरे वर्षभर यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है पर दुर्गा नवरात्रि के दौरान यहां पर मेले के साथ ही भक्तों की भारी भीड़ रहती है। माना जाता है कि यहां पर संध्याकाल में माता के दर्शनों के साथ ही जब पिछोला झील में सूर्यदेव अंतर्ध्यान होते नजर आते हैं तो आप जो भी मन से मां से मांगते हैं वह जरूर पूर्ण होता है। माता की मूर्ति की विशेषता है कि आप उनके किसी भी कोण से दर्शन करें,पर वह ऐसा आपको ही देख रही हैं जैसा प्रतीत होती है। दशहरे पर मां का ब्रह्म मुहूर्त में विशेष शृंगार होता है और उस वक्त मां के दर्शन करना विशेष लाभकारी है। इस शृंगार दर्शन के समय भक्त के मन में जो मंशा होती है उसे मंशापूर्ण करणी माता पूर्ण करती हैं।

मंदिर पर आकर न सिर्फ मां मंशापूर्ण के दर्शनों लाभ मिलता है बल्कि यहां से पिछोला झील तथा अरावली की पहाड़ियों पर जब सूर्यदेव अस्तगामी होते हैं तो मंदिर में मां की छवि और होने वाली दिव्य आरती एक अद्भुत नजारा प्रस्तुत करते हैं। मां के शोक-संताप हरने वाले पुण्य प्रताप का ही असर है कि उदयपुर हमेशा आक्रमणकारियों से निर्भय रहा तथा इसका गौरव आज तक उसी रूप में कायम है जिस रूप में महाराणा प्रताप या उनके पूर्वजों के समय में था। मंशापूर्ण करणी माता की जोत बीकानेर से भले ही लाई गई हो पर दोनों मंदिरों में जो एक खास अंतर है वह यह है कि बीकानेर में करणी मंदिर में हजारों की संख्या में चूहे हैं और उनके प्राप्त किए प्रसाद को ही भक्त प्राप्त करते हैं, लेकिन यहां पर चूहे नहीं हैं। हालांकि एक-दो सफेद-काले चूहे यहां पर एक भक्त ने पाल रखे हैं। मंदिर रोपवे से भी जुड़ा है और यहां आने के लिए चार मिनट के रोपवे का सफर करना होता है।

मंदिर आने के लिए उदयपुर देश के हर हिस्से से रेल, सड़क और हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहां पर जहां पैदल पथ बना है वहीं रोपवे भी है। गुप्त नवरात्रों हो या फिर चैत्र और आश्विन मास के नवरात्र यहां पर काफी भीड़ रहती है।

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