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महान गणितज्ञ

वर्ष 1963 की बात है। बीएससी प्रथम वर्ष की गणित की कक्षा चल रही थी। एक विद्यार्थी ने सवाल हल कर प्रोफेसर को दिखाया। प्रोफेसर ने उस सवाल पर गलत का निशान लगाकर वापस कर दिया और कहा, ‘यह सवाल...
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वर्ष 1963 की बात है। बीएससी प्रथम वर्ष की गणित की कक्षा चल रही थी। एक विद्यार्थी ने सवाल हल कर प्रोफेसर को दिखाया। प्रोफेसर ने उस सवाल पर गलत का निशान लगाकर वापस कर दिया और कहा, ‘यह सवाल तुमसे हल हो ही नहीं सकता।’ विद्यार्थी ने उसी सवाल को कई तरीकों से हल कर पुनः प्रोफेसर के समक्ष रखा। प्रोफेसर को विद्यार्थी के व्यवहार पर गुस्सा आया और उन्होंने उसकी शिकायत प्राचार्य से कर दी। प्राचार्य ने चैंबर में विद्यार्थी को डांटा तो वह रोने लगा। यह देखकर प्राचार्य ने पूरी घटना पूछी। उन्होंने विद्यार्थी से कई कठिन सवाल हल करने को कहा, जिन्हें उसने चुटकी बजाते हल कर दिखाया। प्राचार्य का आश्चर्य बढ़ गया और वे उसे कुलपति के पास लेकर गए। उन्होंने कहा, ‘सर, यह विद्यार्थी असाधारण प्रतिभा का धनी है। इसे प्रथम वर्ष की नहीं, अंतिम वर्ष की परीक्षा देनी चाहिए।’ इस प्रकार पटना विश्वविद्यालय के नियम में बदलाव कर विद्यार्थी को एक वर्ष में ऑनर्स की डिग्री प्रदान की गई। गणित में अपनी अद्भुत क्षमता से सभी को चौंकाने वाले ये विद्यार्थी थे – वशिष्ठ नारायण सिंह। वे गणना में कंप्यूटर को भी मात देते थे। वर्ष 1969 में ‘दी पी ऑफ स्पेस थ्योरी’ से विश्व के गणितज्ञों को चौंकाने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह को बर्कले विश्वविद्यालय में ‘जीनियसों का जीनियस’ कहा जाता था।

प्रस्तुति : रेनू सैनी

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