एक बार एक ऋषि अपने शिष्यों के साथ लंबी यात्रा पर निकले। कई पहाड़ियां और मैदान पार करके वे एक जनजातीय इलाके में पहुंचे। वहां एक बड़ा मेला लगा हुआ था। शिष्यों ने वहां मेला देखने की इच्छा जाहिर की। शिष्यों का मन रखने को ऋषि वहां पहुंचे। ग्रामीणों ने ऋषि को बताया कि यहां मुकाबले के लिए एक महान पहलवान आने वाले हैं। आज पहलवानों का एक बड़ा मुकाबला है। दूर-दूर देशों से पहलवान यहां दम ठोकने वाले हैं। तब ऋषि अपने शिष्यों के साथ मुकाबला देखने की प्रतीक्षा करने लगे। फिर ढोल-नगाड़ों के साथ एक विशालकाय पहलवान अखाड़े में पहुंचा। उसका गर्मजोशी से स्वागत किया गया। पूरे अहंकार के साथ पहलवान आयोजन स्थल पर पहुंचा। उसने एक ऊंची हुंकार भरी और एक-एक करके दूसरे पहलवानों को गिराना शुरू कर दिया। यह देखकर ऋषि का मन खिन्न हुआ। उन्होंने कहा कि ये पहलवान महान कैसे हो सकता है। महान वह होता है जो गिरे लोगों को उठाता है। ये तो अच्छी सेहत का दंभ है। अहंकार है और दूसरों को नीचा दिखाने का उपक्रम है। शिष्यों ने ऋषि से सहमति जतायी और दूसरे गांव के लिये आगे निकल गए।
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