पितृ पक्ष केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन, मृत्यु और मोक्ष के मध्य जुड़ा एक आध्यात्मिक सेतु है। यह श्रद्धा, संस्कार और तर्पण के माध्यम से पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। यह परंपरा न केवल हमारी जड़ों से जोड़ती है, बल्कि समाज में सेवा, करुणा और सामूहिकता की भावना को भी सुदृढ़ करती है। यह पर्व पीढ़ियों को जोड़ने, संबंधों को संजोने और आत्मिक शांति प्रदान करने वाला आध्यात्मिक ऊर्जा स्रोत भी है।
पितृ पक्ष महज धार्मिक कर्मकांड नहीं है बल्कि यह भारतीय संस्कृति की उस मूल भावना का प्रतीक है, जिसमें ऋणानुबंध का विचार निहित है। यह पीढ़ियों को जोड़ने वाला एक जीवंत सेतु है। आठ सितंबर से शुरू हो रहे पितृ पक्ष को हमें इसी नजरिये से देखना चाहिए। पितृ पक्ष वह समय है जब वर्तमान पीढ़ी अपने पुरखों का स्मरण करती है और आने वाली पीढ़ी को इस महती परंपरा से परिचय कराती है। पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की यह परंपरा दिखाती है कि समाज केवल आज की उपलब्धियों पर नहीं टिका बल्कि पूर्वजों के त्याग, परिश्रम और संस्कारों की नींव पर खड़ा है। पितृ पक्ष के अनुष्ठान, तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध भोज यह संदेश देते हैं कि वंश परंपरा का स्मरण और सामूहिक दान, पुण्य ही सच्चा धर्म है। यह परंपरा परिवार और समाज को एक सूत्र में पिरोती है। गांवों और शहरों में लोग एकत्र होकर पितरों का श्राद्ध करते हैं और गरीबों को भोजन कराते हैं। ऐसे में यह महज धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि दया, सेवा और सामूहिकता का उत्सव है।
कब और कितने दिन
पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक यह समय भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक का होता है यानी कुल 15 दिनों का इसे महालय अमावस्या पर विशेष महत्व दिया जाता है। पितृ पक्ष साल में केवल एक बार आता है। यद्यपि श्राद्ध, मासिक अमावस्या या मृत्यु तिथि पर श्राद्ध की परंपरा है, जो पितृ पक्ष से अलग होती है। पितृ पक्ष की जड़ें हमारे वेद, पुराणों में भी गहराई से समायी हुई हैं। महाभारत में भीष्म पितामह के निर्देश पर युधिष्ठिर ने पितृ पक्ष में श्राद्ध करके कुल का कल्याण किया था। माना जाता है कि जो संतान पितृ पक्ष में श्रद्धा से तर्पण करती है, उसके कुल का उत्थान होता है और पितरों की आत्माएं तृप्त होकर आशीर्वाद देती हैं।
पीढ़ियों को जोड़ने का माध्यम
पितृ पक्ष धार्मिक कर्मकांड नहीं है बल्कि यह परिवार और समाज के तानेबाने को मजबूत करता है। इसके जरिये हम वंश परंपरा का स्मरण करते हैं। लोग पितृ पक्ष में अपने पुरखों के कर्म और इतिहास को याद करके गौरव महसूस करते हैं। पितृ पक्ष में गांवों और कस्बों में श्राद्ध भोज के मौके पर वृहद् परिवार और समाज के लोग साथ बैठते हैं, जिससे सामूहिकता और सामाजिक समानता का भाव मजबूत होता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध भोज के तहत गरीबों, ब्राह्माणों और अतिथियों को भोजन कराया जाता है। यह परंपरा समाज में करुणा और सेवा की भावना जगाती है। पितृ पक्ष में देश के कई हिस्साें में लोग सांस्कृतिक पर्यटन के तहत एकजुट होते है। मसलन बिहार के गया, उत्तर प्रदेश के बनारस, मध्य प्रदेश के उज्जैन आदि नगरों में लाखों लोग श्राद्ध पक्ष पर एकत्र होकर अपने पुरखों का तर्पण करते हैं। इससे सांस्कृतिक पर्यटन और अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। पितृ पक्ष के मौके पर घर से बाहर रह रहे परिवारजन घर लौटते हैं और इस तरह परिवार पुनः एकत्र होता है।
वैज्ञानिक आधार भी
पितृ पक्ष की परंपरा के पीछे एक गहरा वैज्ञानिक आधार भी है। पितृ पक्ष उस समय आता है, जब ऋतु परिवर्तन का समय होता है। इस दौरान लोगों की पाचनशक्ति कमजोर रहती है और श्राद्ध में परोसे जाने वाले व्यंजन, खिचड़ी, मूंग की दाल, तिल, जौ, घी तथा साग-सब्जियां सब हल्के और सुपाच्य होते हैं, जो लोगों को नई ऋतु के लिए शारीरिक रूप से तैयार करते हैं। श्राद्ध के पीछे जल संरक्षण का पर्यावरणीय संदेश भी छिपा है। वास्तव में श्राद्ध में किया जाने वाला तर्पण जल अर्पण का ही मूल भाव है। इससे जलस्रोतों के महत्व को समझाया जाता है। भारतीय संस्कृति जल को जीवन का आधार मानती है, ऐसे में तर्पण उसी श्रद्धा का प्रतीक है। इस पूरी प्रक्रिया में एक मनोविज्ञान भी काम कर रहा होता है। पूर्वजों का स्मरण व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़ता है, इससे मानसिक स्थिरता, संतोष और आत्मीयता की भावना विकसित होती है। आधुनिक विज्ञान में इसे जीनोलॉजी या फैमिली हिस्ट्री कहते हैं, जो वास्तव में पितृ पक्ष के महत्व को चिकित्सा और आनुवांशिकी के साथ जोड़ती है।
परंपरा का पुल
पितृ पक्ष वास्तव मंे हमारे अतीत और वर्तमान के बीच, जीवन और मृत्यु के बीच तथा संस्कृति और विज्ञान के बीच एक मजबूत पुल का काम करते हैं। पितृ पक्ष हमें आस्वश्त करते हैं कि हम अकेले नहीं हैं बल्कि पीढ़ियों की एक शृंखला का हिस्सा हैं। इससे अगली पीढ़ी को यह शिक्षा मिलती है,जीवन केवल अपनी उपलब्धियों से नहीं, पुरखों के त्याग और संस्कारों से भी गढ़ा जाता है। पितृ पक्ष जैसे पर्व हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखते हैं और भविष्य के लिए मजबूत नींव तैयार करते हैं। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि अतीत से जुड़कर ही भविष्य का निर्माण होता है। ऐसे में सांस्कृतिक रूप से भारतीय समाज की यह खास विशेषता हमें अपने मृत पूर्वजों की सामूहिक स्मृति से जोड़कर हमें जीवन संबंल प्रदान करती है।
कुल मिलाकर पितृ पक्ष महज धार्मिक कर्मकांड नहीं है बल्कि हर साल 15 दिनों का यह वह कालखंड होता है, जब हम ठहरकर अपने अतीत से अपना रिश्ता महसूस करते हैं। पितृ पक्ष हमारे वर्तमान और अतीत का भावनात्मक पुल है, जो हमें हमारी जड़ों तक ले जाता है और समाज तथा परिवार को एक सूत्र में पिरोता है। इसमें कृतज्ञता, सेवा, करुणा और सामूहिकता का भाव है। इस तरह देखें तो धर्म, संस्कृति और विज्ञान की दृष्टियों में पितृ पक्ष हमें पूर्वजों का सम्मान और भविष्य की समृद्धि का रास्ता दिखाता है। इ.रि.सें.