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समय का सदुपयोग

एकदा
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सर्वोदयी नेता विनोबा जी के असली दांत टूट चुके थे, और वे नकली दांतों का इस्तेमाल करते थे। वे रोज़ अपने हाथ से दांत धोते थे, जिसमें लगभग पंद्रह मिनट का समय लग जाता था। एक दिन, जानकी देवी ने विनोबा जी से कहा, ‘आपके पंद्रह मूल्यवान मिनट दांत धोने में लगते हैं, यह ठीक नहीं है। क्या किसी और को यह काम नहीं सौंप सकते? ऐसा समय का दुरुपयोग होता है।’ विनोबा जी मुस्कराते हुए बोले, ‘हाथ-पैर से जो काम करते हैं, उसमें समय का दुरुपयोग नहीं होता। असल में समय का दुरुपयोग तब होता है जब हमारे मन में कोई काम, क्रोध, लोभ या अन्य विकार उत्पन्न होते हैं। जब हमारा मन अशांत होता है, तब समझो कि वही समय व्यर्थ गया। अगर हम शुद्ध मन से कोई भी काम करते हैं, तो वह समय कभी व्यर्थ नहीं जाता।’ यह बात हमें यह सिखाती है कि किसी भी काम को जब हम पूरी आत्मिक शांति और संतुलन के साथ करते हैं, तो वह समय का सही उपयोग होता है, चाहे वह कितना भी साधारण क्यों न हो।

प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री

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