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ईश्वर की प्रसन्नता

एकदा
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राबिया बसरी एक बहुत ही धार्मिक महिला थी। वह एक झोपड़ी में रहती थी, सोने के लिए एक गद्दा, तकिये के स्थान पर एक ईंट, एक छोटा बर्तन और एक टूटा हुआ मिट्टी का गिलास, बस ये ही उसकी संपत्ति थी। कुछ लोग उससे मिलने आए और उन्हें उसकी हालत पर तरस आया। उन्हें लगा कि वह ईश्वर की इतनी पूजा करती है, फिर भी उसके लिए कोई सुविधा नहीं है। यहां तक कि एक अच्छा तकिया भी नहीं। राबिया उनके मन की बात समझ गई। राबिया ने उनसे प्रश्न किया, ‘क्या ईश्वर सर्वशक्तिमान है?’ उन्होंने कहा, ‘हां’। उसने फिर प्रश्न किया, ‘क्या वह आकाश को भूमि में और भूमि को आकाश में बदल सकता है?’ उन्होंने कहा, ‘हां!’ उसने फिर पूछा, ‘क्या वह मेरी स्थिति आसानी से बदल सकता है?’ उन्होंने कहा, ‘वह तुम्हें राजकुमारी जितना धनवान बना सकता है!’ उसने आगे पूछा, ‘उसने इसे नहीं बदला है, क्या यह सच है या नहीं?’ वे सहमत हुए। फिर राबिया ने उन्हें समझाया, ‘इसका अर्थ है कि भगवान मेरी इस हालत से खुश हैं। अगर भगवान खुश हैं तो मैं नाराज़ कैसे हो सकती हूं?’ यही एक भक्त की समझ है। इसे समझना और आत्मसात करना कठिन है। हमें ईश्वर की इच्छा तभी समझ आती है जब किसी और को दुःख होता है। हम उन्हें सांत्वना देते हैं। यह वैसा ही है जैसे हम किसी के लिए शोक मनाते हैं।

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