अलका ‘सोनी’
‘आश्विन मास’ शरद ऋतु के आगमन और वर्षा ऋतु की विदाई का वक्त होता है। हर तरफ कास के सफेद फूल वर्षा ऋतु की वृद्धावस्था का संकेत देते प्रतीत होते हैं। पितृ पक्ष में जो शुभ काम वर्जित रहते हैं, वे शुरू हो जाते हैं। इसके साथ ही शुरू होता है त्योहारों का मौसम। जिसकी शुरुआत होती है शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा के आगमन से। शरद ऋतु की हल्की शीतलता और सुहानी लगती धूप के बीच आश्विन शुक्ल प्रथमा तिथि को देवी दुर्गा का आह्वान करते हुए कलश स्थापना की जाती है। इसके साथ ही नवरात्रि का प्रारंभ हो जाता है।
नवरात्रि नौ दिनों तक चलने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। हिंदुओं के शक्ति संप्रदाय में भगवती दुर्गा को दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना गया है। वेदों में तो देवी दुर्गा का व्यापक उल्लेख मिलता है। पुराणों में भी दुर्गा को आदिशक्ति का स्वरूप माना गया है। देवी दुर्गा, भगवान शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक स्वरूप है। जिन्हें प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की जननी तथा विकार रहित माना गया है।
देवी दुर्गा के कई नाम और रूप हैं। हर रूप में वे करुणामयी, कल्याणी और शक्ति स्वरूपा हैं। उनका मुख्य रूप गौरी है। जो शांत, सुंदर और गौरवर्णा है। साथ ही उनका सबसे भयानक रूप काली का है। जिसे उन्होंने रक्तबीज नामक असुर का वध करते समय धरा था। भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा का अवतरण जगत की रक्षा और दुष्टों के दमन के लिए हुआ है। इसलिए नवरात्रि के दौरान नव दुर्गा के मुख्य नौ स्वरूपों का ध्यान, उपासना और आराधना की जाती है।
नवरात्र में प्रत्येक दिन शक्ति के अलग अलग रूप का पूजन किया जाता है। देवी दुर्गा को अष्ट भुजाओं वाली कहा जाता है। कुछ शास्त्रों में उनके दस भुजा स्वरूप का भी वर्णन मिलता है। वास्तु शास्त्र में आठ अहम दिशाएं होती हैं, लेकिन कई जगहों पर दस कोण या दिशाओं की बात की जाती है। इनमें हैं प्राची (पूर्व), प्रतीची (पश्चिम), उदीची (उत्तर), अवाचि (दक्षिण), ईशान (उत्तर-पूर्व), अाग्नेय (दक्षिण- पूर्व), नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम), वायव्य (उत्तर पश्चिम), ऊर्ध्व (आकाश की ओर), अधरस्त (पाताल की ओर)। कई जगह 8 दिशाएं ही मानी जाती हैं, क्योंकि आकाश और पाताल की ओर को दिशा का दर्जा नहीं दिया जाता। हिंदू शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना गया है कि देवी दुर्गा हर दिशा से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। यही कारण है कि उनकी आठ भुजाएं हैं, जो आठों दिशाओं में काम करती हैं।
… और कहलाईं महिषासुरमर्दिनी
मां दुर्गा को शेर पर सवार बताया जाता है। शेर या सिंह अदम्य साहस और अतुल शक्ति का प्रतीक होता है। ऐसा माना जाता है कि मां भवानी शेर पर सवार होकर हर बुराई का विनाश करती हैं। मां दुर्गा के तीनों नेत्र सूर्य, चंद्रमा और अग्नि का प्रतीक हैं। नवरात्र के दौरान मां की जो प्रतिमा स्थापित की जाती है, उसमें उन्हें महिषासुर का वध करते हुए दर्शाया जाता है। पुराणों के अनुसार जब सभी देवता उस पर विजय प्राप्त करने में असफल रहे, तब सबने मिलकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इंद्र समेत शक्ति के पुंज से एक देवी का निर्माण किया था। जिन्हें, उन्होंने दुर्गा का नाम दिया। उन्हें हर प्रकार के शस्त्राें से सुसज्जित किया। सिंह का वाहन दिया। तब देवी दुर्गा ने उस महिषासुर का मर्दन कर सृष्टि की रक्षा की। तब से उन्हें महिषासुरमर्दिनि भी कहा जाने लगा। नवरात्र के दसवें दिन महिषासुर पर विजय प्राप्त करने के कारण उसे विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। यह हमें बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है। नवरात्रि के दिन हम में शक्ति, बुद्धि, चेतना, साहस और रक्षा के दिव्य भाव भरते हैं। साथ ही मां दुर्गा के आविर्भाव और कृतित्व की कथाएं नारी के उदात्त स्वरूप को भी दर्शाते हैं। जिन तामसिक शक्तियों का संहार एक पुरुष नहीं कर सकता, उनका संहार एक नारी के हाथों अवश्य होता है। मां दुर्गा नारी के उदात्त, शक्तिशाली स्वरूप और तेजोमय व्यक्तित्व की प्रतीक हैं।