चैत्र मास की नवमी तिथि को माता कौशल्या अपने महल के कक्ष में भगवान विष्णु का ध्यान कर रही थीं। तभी भगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में उनके समक्ष प्रकट हुए। सदा की भांति मंद मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, “हे देवी! आपने और महाराज दशरथ ने पूर्व जन्म में कठोर तप किया था। तब मैंने वर दिया था कि अगले जन्म में आपके यहां पुत्र रूप में अवतरित होऊंगा। आज अपना वचन निभाने आया हूं।” यह सुनकर माता कौशल्या बोलीं, “प्रभु, आज तक मैंने सुना था कि भगवान कभी असत्य नहीं बोलते, पर आज अनुभव हुआ कि आप असत्य भी कहते हैं।” भगवान विष्णु आश्चर्यचकित हुए, “माता, मैंने ऐसा कौन-सा असत्य कहा?” कौशल्या मुस्कराकर बोलीं, “आपने कहा था कि पुत्र रूप में आएंगे, पर यह चतुर्भुज रूप तो पिता का है, पुत्र का नहीं।” भगवान उनकी ममता समझ गए। वे तुरंत शिशु रूप धारण कर माता की गोद में आ गए। माता कौशल्या ने पुनः कहा, “प्रभु, आज यह भी जान लिया कि भगवान अज्ञानी होते हैं।” भगवान ने पूछा,“माता, ऐसा क्यों?” कौशल्या बोलीं, “क्योंकि नवजात शिशु हंसता नहीं, रोता है, और आप मुस्करा रहे हैं।” माता की भावना समझकर प्रभु श्रीराम तुरंत रो पड़े।
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