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भक्तों को शुभत्व का आशीष देते गणपति

कोकिला माता मंदिर
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कहा जाता है कि गणेश जी की पीठ पर दरिद्रता रहती है। घरों में या फिर दूसरे स्थानों में, यहां तक की मंदिरों में भी गणेश जी की जो मूर्तियां स्थापित की जाती हैं उनको उस ओर लगाया जाता है जिस ओर से उनकी पीठ नजर नहीं आए। कोकिला माता मंदिर की मूर्ति में यही विशेषता है कि वह दोनों ओर से अपने भक्तों को शुभत्व का आशीर्वाद देती है।

हिंदू धर्म में सर्वप्रथम पूज्य गणेश जी एक ऐसे देवता है जिनका नाम ले लेने मात्र से ही बहुत से काम बन जाते हैं, लेकिन जब वह किसी भी काम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं तो मान लिया जाता है कि यह कार्य सफल होगा। गणेश चतुर्थी पर उनकी पूजा-अर्चना करने से ही पूरे वर्षभर सुख-संपत्ति के भंडार भरे रहते हैं। सनातन काल से ही उन्हें शुभत्व का प्रतीक माना जाता है।

गणेश चतुर्थी पर जिस तरह से चंन्द्रमा के दर्शन को अशुभ मानते हैं, ठीक उसी प्रकार से जब हम गणेश जी की पीठ के दर्शन करते हैं तो माना जाता है कि हम दरिद्रता को आमंत्रित करते हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पांखू में स्थित कोकिला माता के मंदिर में गणेश जी की एक ऐसी चमत्कारी मूर्ति है जिसके किसी भी ओर से दर्शन करें पर पीठ के दर्शन नहीं होते। इस मूर्ति के दर्शनों के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। कोकिला माता का मंदिर न्याय की मां के मंदिर के रूप में दुनियाभर में प्रसिद्ध है। माना जाता है कि मां के दर्शन से पहले गणपति के दर्शन शुभत्व और हर विपदा को हरने वाले होते हैं।

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विशेष पूजा

गणेश जी की जो मूर्ति यहां पर उपस्थित है वह द्विमुखी है। एक मुख माता की ओर है और ऐसा प्रतीत होता है कि गणेश जी मां के दर्शनों को जाने वाले भक्तों को देख रहे हैं और उन्हें मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद दे रहे हैं। इस मूर्ति के पीछे की ओर अर्थात‍् दूसरी ओर भी गणेश जी उसी रूप में हैं जिस रूप में सामने की ओर देखते हुए हैं। दूसरी ओर वह उन सभी धार्मिक कार्यों को पूर्ण करने का आशीर्वाद देते हैं जो उनकी उपस्थिति में वहां सम्पन्न कराए जाते हैं। गणेश जी को सम्मुख मानकर यहां पर न सिर्फ गोदान, हवन आदि कराए जाते हैं, बल्कि मनोकामना पूर्ण होने पर विशेष पूजा भी होती है।

पीठ के दर्शन निषिद्ध

पुरातन मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती और भोलेनाथ के पुत्र गणेश जी ने एक स्पर्धा में पूरे संसार के चक्कर के स्थान पर माता-पिता की परिक्रमा कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की थी तथा भू-लोक की परिक्रमा के समान फल प्राप्त किया था। गणेश जी माता पार्वती को सर्वाधिक प्रिय हैं इसलिए कहा जाता है कि उनके दर्शन करने से पहले गणपति के दर्शनों से मां की प्रसन्नता भी मिल जाती है। गणेश जी के शरीर के हर अंग के दर्शनों का महत्व है। उनकी सूंड में धर्म है तो हाथों में वरदान और अन्न हैं जबकि पेट सुख-समृद्धि के लिए जाना जाता है और नेत्र लक्ष्य के लिए। कहा जाता है कि गणेश जी के चरणों में सातों लोक निवास करते हैं।

यह भी कहा जाता है कि उनकी पीठ पर दरिद्रता रहती है। घरों में या फिर दूसरे स्थानों में, यहां तक की मंदिरों में भी गणेश जी की जो मूर्तियां स्थापित की जाती हैं उनको उस ओर लगाया जाता है जिस ओर से उनकी पीठ नजर नहीं आए। कोकिला माता मंदिर की मूर्ति में यही विशेषता है कि वह दोनों ओर से अपने भक्तों को शुभत्व का आशीर्वाद देती है। पीठ के दर्शन नहीं करने के पीछे एक कारण यह भी कहा जाता है कि उन्होंने जब माता-पिता की परिक्रमा की थी तो हमेशा उनका मुख ही उनकी ओर था और जब शिव-पार्वती का आशीर्वाद लेना हो तो गणेश जी की प्रथम स्तुति काफी लाभदायक होती है।

कहते हैं कि माता पार्वती के सामने गणेश जी को कभी पीठ करके नहीं दिखाया जाता। इसके पीछे एक कारण मां के प्रति पुत्र का सम्मान भाव भी है। वैसे कुछ विद्वान पीठ के दर्शन नहीं करने के पीछ यह भी कहते हैं कि गणेश जी हमें बताते हैं कि हम हमेशा सामने की ओर देखें और भविष्य की सोचें, जहां अवसर हमारा इंतजार कर रहे हैं। वह पीठ की ओर नहीं देखने का कारण बताते हैं कि ऐसा करने से हम अतीत में उलझ जाएंगे और सामने के अवसर हमारे हाथ से निकल जाएंगे।

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