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मृत्यु भय से मुक्ति

एक बार एक जिज्ञासु ने स्वामी विवेकानंद से प्रश्न किया, ‘आदरणीय, मैं मृत्यु के भय से कैसे मुक्त हो सकता हूं?’ स्वामी विवेकानंद ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘मृत्यु का भय इसलिए होता है क्योंकि हमें लगता है कि...
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एक बार एक जिज्ञासु ने स्वामी विवेकानंद से प्रश्न किया, ‘आदरणीय, मैं मृत्यु के भय से कैसे मुक्त हो सकता हूं?’ स्वामी विवेकानंद ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘मृत्यु का भय इसलिए होता है क्योंकि हमें लगता है कि हम अपनी पहचान, अपनी संपत्ति, अपने आनंद और अपने प्रियजनों से कहीं दूर न हो जाएं, उन्हें खो न दें।’ जिज्ञासु ने सहमति में सिर हिलाया, ‘जी, आपने बिल्कुल सही कहा।’ स्वामी विवेकानंद बोले, ‘इस भय से मुक्त होने का उपाय यही है कि स्वयं को केवल यह शरीर न समझो—खुद को आत्मा मानो। एकांत का अभ्यास करो। जीवन में अनासक्ति (किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति से आवश्यकता से अधिक जुड़ाव न होना) की आदत विकसित करो। धीरे-धीरे तुम अनुभव करने लगोगे कि मृत्यु अब भयावह नहीं लगती। तुम्हारा मन स्थिर रहेगा और मृत्यु की भावना मात्र भी तुम्हें विचलित नहीं कर पाएगी।’

प्रस्तुति : पूनम पांडे

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