Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

दुःख से निवृत्ति के लिए सूत्र

अष्टांगिक मार्ग
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

बुद्ध पूर्णिमा 23 मई

मान्यता है कि वैशाख महीने की पूर्णिमा को ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, उन्हें ‘ज्ञान’ अथवा ‘बुद्धत्व’ की प्राप्ति हुई थी और वे निर्वाण को भी इसी दिन प्राप्त हुए थे। यही कारण है कि दुनिया के विभिन्न देशों में फैले 50 करोड़ से भी अधिक बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग इस त्योहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा को दान-पुण्य और धर्म-कर्म के कार्य किए जाते हैं। साथ ही यह स्नान लाभ की दृष्टि से हिंदुओं का पर्व भी माना जाता है।

चेतनादित्य आलोक

अध्यात्म के मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए वैशाख महीने की पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। इस पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा, पीपल पूर्णिमा एवं बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदुओं के अतिरिक्त बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का भी एक प्रमुख त्योहार है। वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी तीन अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाओं की साक्षी रही है। मान्यता है कि इस दिन को ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, उन्हें ‘ज्ञान’ अथवा ‘बुद्धत्व’ की प्राप्ति हुई थी और वे निर्वाण को भी इसी दिन प्राप्त हुए थे। यही कारण है कि दुनिया के विभिन्न देशों में फैले 50 करोड़ से भी अधिक बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग इस त्योहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। साथ ही यह स्नान लाभ की दृष्टि से हिंदुओं का अंतिम पर्व भी माना जाता है। यह न सिर्फ भारत में अपितु बौद्ध आबादी वाले दुनिया के कई अन्य देशों में भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इनमें श्रीलंका, कंबोडिया, वियतनाम, चीन, नेपाल थाईलैंड, मलेशिया, म्यांमार, इंडोनेशिया आदि देश शामिल हैं। श्रीलंका में इस दिन को ‘वेसाक’ कहा जाता है, जो ‘वैशाख’ का ही एक परिवर्तित रूप अथवा अपभ्रंश है। इस दिन बौद्ध मतावलंबी बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। इस दौरान दीप प्रज्वलित कर बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लिया जाता है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान बुद्ध को भगवान श्रीहरि विष्णु का नौवां अवतार माना गया है।

Advertisement

भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग

भगवान बुद्ध ने चार प्रमुख सूत्र दिए, जिन्हें ‘चार आर्य सत्य’ के नाम से जाना जाता है। इनमें पहला आर्य सत्य ‘दुःख’ है, दूसरा ‘दुःख का कारण’, तीसरा आर्य सत्य है दुःख का निदान और चौथा आर्य सत्य वह मार्ग है, जिससे होकर मनुष्य के जीवन से दुःख का निवारण होता है। भगवान बुद्ध ने दुःख के निवारण हेतु ‘अष्टांगिक मार्ग’ बताए हैं। उन्होंने बताया कि तृष्णा सभी दुःखों का मूल कारण है। तृष्णा के कारण ही मनुष्य संसार की विभिन्न वस्तुओं की ओर प्रवृत्त होता है और जब वह उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता अथवा जब वे प्राप्त होकर भी नष्ट हो जाती हैं, तब उसे दुःख होता है। वहीं, तृष्णा के साथ ही मृत्यु प्राप्त करने वाला प्राणी उसकी प्रेरणा से फिर जन्म ग्रहण करता है, और सांसारिक दुःख के चक्र में पिसता रहता है। इसलिए भगवान बुद्ध कहते हैं कि तृष्णा को त्याग देने से दुःख की निवृत्ति संभव है। तात्पर्य यह कि तृष्णा का त्याग ही मनुष्य की ‘मुक्ति का मार्ग’ है। भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग दृष्टि, संकल्प, वाणी, कर्म, आजीविका, व्यायाम, स्मृति और समाधि के सम्यक प्रयोग का संदेश देती है। उनके अनुसार मनुष्य के दुखों का वास्तविक कारण उसका अपना ही अज्ञान और मिथ्या दृष्टि है।

पहला प्रवचन सारनाथ में

भगवान बुद्ध ने अपने जीवन का प्रथम उपदेश, जिसे ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से जाना जाता है, सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था। उनकी वाणी का ऐसा प्रभाव था कि लोग उनसे जुड़ते चले गए। भेदभाव रहित होकर हर वर्ग के लोगों ने भगवान बुद्ध की शरण ली और उनके उपदेशों का अनुसरण किया। गौरतलब है कि कुछ ही दिनों में पूरे भारत में ‘बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि और संघ शरणम‍् गच्छामि’ का जयघोष गूंजने लगा था। बुद्ध की शिक्षाओं के अनुसार केवल मांस खाने वाला ही नहीं, बल्कि क्रोध, व्यभिचार, छल, कपट, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा करने वाला व्यक्ति भी अपवित्र होता है। भगवान बुद्ध कहते हैं कि मन की शुद्धता के लिए पवित्र जीवन व्यतीत करना आवश्यक है। बता दें कि भगवान बुद्ध का धर्म प्रचार 40 वर्षों तक चलता रहा। अंत में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर स्थित पावापुरी नामक स्थान पर 80 वर्ष की अवस्था में ई.पू. 483 में वैशाख पूर्णिमा के दिन ही उन्हें महानिर्वाण प्राप्त हुआ। इसीलिए बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर में प्रत्येक वर्ष एक महीने तक चलने वाले विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश-विदेश के लाखों बौद्ध अनुयायी शामिल होते हैं। वहीं, बोधगया स्थित बोधिवृक्ष (पीपल वृक्ष), जिसके नीचे भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी, की जड़ों में इस दिन भक्तगण दूध और सुगंधित पानी का सिंचन करके पूजा करते हैं।

करें तीन देवों की पूजा

बौद्ध धर्म की मान्यता के अनुसार बुद्ध (वैशाख) पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की पूजा करने से भक्तों के सारे सांसारिक कष्ट मिट जाते हैं। वैसे शास्त्रों की मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध के साथ-साथ यदि भगवान श्रीहरि विष्णु तथा चंद्रदेव की भी पूजा की जाए तो मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं तथा व्यक्ति के जीवन से संकटों का नाश होता है और सौभाग्य का उदय होता है।

Advertisement
×