रानी पिंगला की मृत्यु होने के बाद राजा भर्तृहरि अपने पर नियंत्रण न रख सके और श्मशान में जाकर रहने लगे। गोरखनाथ जी को जब इस बात का पता चला, तो वह मिट्टी का एक पात्र लेकर राजा भर्तृहरि के पास गए। गोरखनाथ जी ने वह पात्र राजा को दिया, लेकिन वह राजा के हाथ से छूटकर जमीन पर गिरा और टूट गया। पात्र टूटते ही गोरखनाथ जी रोने लगे। यह देख राजा ने कहा, ‘महाराज, आप ज्ञानी होकर भी पात्र टूटने पर रो क्यों रहे हैं। यह पात्र कभी न कभी तो टूटता ही।’ यह सुनकर गोरखनाथ जी ने कहा, ‘यही बात मैं आपको समझाना चाहता हूं। मृत्यु अवश्यम्भावी है, फिर उसके लिए शोक कैसा?’ राजा भर्तृहरि को गोरखनाथ जी की बातों का मर्म समझ में आ गया। वह गोरखनाथ को प्रणाम कर राजमहल को लौट गए और राजकाज में लग गए।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार