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सुहाग की दीर्घायु का पर्व

हरियाली तीज 27 जुलाई
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हरियाली तीज भारत के उत्तरी राज्यों खासकर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्व है। यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 27 जुलाई को पड़ रही है। इस पर्व का विशेष महत्व विवाहित स्त्रियों और कुंवारी कन्याओं के लिए होता है। यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। मान्यता है कि माता पार्वती ने बार-बार जन्म लिया था, ताकि वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त कर सकें। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। हरियाली तीज के दिन सुहागन औरतें अपने पति की दीर्घायु के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहा पति पाने के लिए यह व्रत करती हैं। इसे सुहाग की दीर्घायु तथा प्रेम और सौभाग्य की प्राप्ति का पर्व कहा जाता है।

हरियाली तीज के अलग अलग जगहों पर अलग अलग नाम हैं, जैसे- श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला पर्व हरियाली तीज कहलाता है, तो इसके तुरंत बाद आने वाली अगली तीज को जो कि 15 दिनों बाद आती है, उसे कजरी तीज कहते हैं और इसे भी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि में मनाया जाता है। इसी तरह लगभग एक महीने बाद हरितालिका तीज आती है, यह भी देश के कई राज्यों में मनायी जाती है। हरियाली तीज को कहीं कहीं सिंधारा तीज भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे सावनी तीज, कुछ छोटी तीज, कुछ मधुश्रवा तीज के नाम से भी जानते हैं। बहरहाल यह तीज मानसून के मौसम में मनायी जाती है, जिसका प्रतीक है हर तरफ हराभरा वातावरण। एक तरह से हिंदू महिलाओं के लिए यह पर्व करवा चैथ के जैसा ही है। हरियाली तीज को पंजाब में तीयां और राजस्थान में सिंधारा तीज के नाम से जानते हैं। हालांकि इस पर्व को अलग अलग जगहों पर मनाये जाने में थोड़ा फर्क होता है, लेकिन हर जगह पर्व की भावनाएं एक जैसी होती है।

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हरियाली तीज में एक परंपरा है, जिसमें विवाहित महिलाएं अपनी ससुराल से पारंपरिक कपड़े, चूड़ियां, मेहंदी, सिंदूर और मिठाई जैसे उपहार प्राप्त करती हैं। कहीं-कहीं ये सारी चीजें भाई अपनी विवाहित बहनों को देकर जाते हैं। लेकिन ज्यादातर बहनें इस दिन ससुराल से अपने मायके आती हैं और विवाह पूर्व की अपनी सहेलियों के साथ मिलकर इस पर्व का खूब जश्न मनाती हैं। इस दिन महिलाएं हरे रंग की साड़ियां या लहंगे पहनती हैं, क्योंकि ये रंग शुभ माना जाता है। हिंदू महिलाएं परंपरा के मुताबिक इस दिन सोलह शृंगार करती हैं। इस दिन घर में खूब स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं और सभी लोग उनका आनंद लेते हैं। हरियाली तीज का जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही इसका सांस्कृतिक महत्व भी है। यह पर्व एक तरह से मानसून के प्रति कृतज्ञता का व्यक्त करने का पर्व भी है। इस दिन महिलाएं झूले झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और पारंपरिक परिधान पहनती हैं। यह स्त्री जीवन के उल्लास, सौंदर्य और प्रेम की अभिव्यक्ति का पर्व है। ग्रामीण भारत में किसान हरियाली तीज से अपनी कृषि का शुभारंभ करते हैं।

ससुराल से मायके आयी महिलाएं अपने साथ शृंगार सामग्री, मिठाइयां, नये नये कपड़े लेकर आती हैं या उन्हें ससुराल से भेजा जाता है। इस दिन वे मेहंदी लगाती हैं, नये कपड़े पहनती हैं। उसके पहले इस दिन व्रत रहने वाली महिलाएं सूर्योदय से पहले उठती हैं और स्नान करके नये या धुले कपड़े पहनती हैं। महिलाओं के लिए यह काफी कठिन व्रत होता है, क्योंकि इस व्रत में जल तक ग्रहण करने की मनाही होती है। जबकि इस दिन घर में इतने पकवान और मिठाइयां बनायी जाती हैं कि घर के सारे लोग आनंद लेते हैं, लेकिन व्रत रहने वाली महिलाएं किसी चीज का सेवन नहीं कर सकती, जब तक कि व्रत का पारण न कर लें। महिलाएं इस दिन पानी तक नहीं पीतीं। पूजा में फल, मिठाइयां, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। पूजा करने के लिए मां गौरी की मिट्टी या धातु की प्रतिमा को चौकी पर रखकर उनको लाल चुनरी ओढ़ाकर तथा सुहाग की सभी चीजें अर्पित करके शिव-पार्वती की कथा सुनी जाती है, जिसमें पार्वती ने अपने तप के बल पर भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था।

इस दिन महिलाएं कई जगहों पर रात्रि जागरण करती हैं और अगले दिन तीज की तिथि समाप्त होने पर नहा-धोकर पूजा करके मां पार्वती और भगवान शिव को जल अर्पित करने के बाद ही अपने पतियों के हाथ से जल ग्रहण करती हैं। दरअसल, यह एक आध्यात्मिक और भावनात्मक समर्पण का पर्व है। व्रत रखने वाली महिलाएं अपने पति के सुख, स्वास्थ्य और उसके दीर्घायु की कामना करती हैं। यह प्रेम, समर्पण और नारी शक्ति के आतंरिक बल का पर्व भी है। इस तरह देखें तो हरियाली तीज केवल एक धार्मिक पर्व या अनुष्ठानभर नहीं है बल्कि भारतीय स्त्रियों के सांस्कृतिक गौरव, प्रकृति प्रेम और दांपत्य समर्पण का प्रतीक है। इ.रि.सें.

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