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पितृ तृप्ति और विष्णु की कृपा का पर्व

इंदिरा एकादशी 17 सितंबर
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पितरों के निमित दान किए जाने के पीछे का तथ्य ही यह है कि मनुष्य भौतिक वस्तुओं के प्रति अपने मोह और लाभ को त्याग कर, जरूरतमंदों की मदद करने के मानवीय गुणों को आत्मसात करे।

सनातन परंपरा में पितृ पक्ष का समय अत्यंत पावन माना गया है। यह केवल पूर्वजों की स्मृति का अवसर ही नहीं, बल्कि उनके प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है। इन दिनों तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध के माध्यम से हम अपने पितरों को सम्मान अर्पित करते हैं। यदि पितृ पक्ष में एकादशी का आगमन हो जाए तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष यह तिथि 17 सितंबर, बुधवार को पड़ रही है।

कथा और नामकरण

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पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में इंद्रसेन नामक राजा भगवान विष्णु का परम भक्त था। एकादशी व्रत भंग होने के कारण उसे यमलोक जाना पड़ा। नारद जी की सलाह पर उसके पुत्र ने इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया और उसके पुण्य से राजा इंद्रसेन को मुक्ति मिली। तभी से इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी प्रचलित हुआ।

आध्यात्मिक-धार्मिक महत्व

पद्म पुराण में कहा गया है कि पितृ पक्ष में आने वाली इस एकादशी का फल अनेक गुना बढ़ जाता है। यदि व्रती इस दिन व्रत-पूजन करके उसका पुण्य पितरों को समर्पित करे तो सात पीढ़ियों तक के पितरों का उद्धार होता है। स्वयं श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था कि इंदिरा एकादशी व्रत से जीव यमलोक के बंधन से मुक्त होकर बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह व्रत केवल पूर्वजों की तृप्ति ही नहीं करता, बल्कि साधक की आत्मा को भी शुद्ध करता है। संयम, उपवास और ईश्वर आराधना के माध्यम से साधक का चित्त शांत होता है और अहंकार क्षीण होता है।

प्रातः स्नान आदि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप को पंचामृत से स्नान कराएं। अक्षत, पुष्प, तुलसी पत्र और यज्ञोपवीत अर्पित करें। एकादशी कथा श्रवण एवं आरती करें।

दान का महत्व

शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन अन्न, घी, दूध, दही आदि का दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। भूखों को भोजन कराना और जरूरतमंदों की सेवा करना पितरों को प्रसन्न करता है। यह पुण्य दान दाता के जीवन में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि लाता है। पितरों के निमित दान किए जाने के पीछे का तथ्य ही यह है कि मनुष्य भौतिक वस्तुओं के प्रति अपने मोह और लाभ को त्याग कर, जरूरतमंदों की मदद करने के मानवीय गुणों को आत्मसात करे।

जीवन संदेश

इंदिरा एकादशी केवल परंपरा निभाने का पर्व नहीं है, बल्कि यह हमें कर्तव्य, सेवा और त्याग की शिक्षा भी देता है। पितरों के आशीर्वाद और भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सकारात्मकता, शांति और प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। पितृ पक्ष में आने वाली यह एकादशी वास्तव में पितृ तृप्ति और विष्णु कृपा का सेतु है, जो जीव को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की ओर ले जाती है।

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