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रोज़ा रखने से समृद्ध होते हैं मानवीय मूल्य

रमजान महीना मुस्लिम समुदाय के लिए आत्मनियमन और इबादत का समय होता है, जिसमें रोज़ा रखने का विशेष महत्व है। इस महीने में संयम, दान और इबादत के जरिए आत्मा और शरीर दोनों की शुद्धि होती है। बुशरा तबस्सुम शनिवार...

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रमजान महीना मुस्लिम समुदाय के लिए आत्मनियमन और इबादत का समय होता है, जिसमें रोज़ा रखने का विशेष महत्व है। इस महीने में संयम, दान और इबादत के जरिए आत्मा और शरीर दोनों की शुद्धि होती है।

बुशरा तबस्सुम

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शनिवार सायं सूरज डूबने के साथ ही अरबी कैलेंडर के नौवें महीने रमजान की शुरुआत हो गई। मुस्लिम समुदा‌य के लिए यह महीना बहुत खास है। इस पूरे महीने में सभी मुस्लिम रोज़ा रखते हैं तथा नमाज व कुरआन का पाठ करते हैं। आत्मनियमन व आत्म-प्रशिक्षण के लिए यह महीना विशेष महत्व रखता है।

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रमज़ान माह में रोज़े का विशेष महत्व है। रोज़ा यानी पूरे दिन कुछ भी नहीं खाया-पिया जाए। इसकी शुरुआत सूरज निकलने के पहले कुछ खा-पीकर की जाती है, जिसे सहरी कहा जाता है। सूरज डूबने पर ही कुछ खाकर रोज़ा पूर्ण होता है। इस प्रक्रिया को इफ्तार करना कहा जाता है। रोज़े की हालत में पूरे दिन बुराइ‌यों से परहेज और इबादत के द्वारा ही रोज़ा सम्पन्न होता है। इस माह में कुरआन की अधिक से अधिक तिलावत भी विशेष रूप से की जाती है। रात की नमाज़ में तरावीह के दौरान कुरअम सुनाया जाता है, जिसे अंतिम रोज़े तक पूरा करना होता है।

पूरे रमज़ान को तीन अशरों में विभाजित किया गया है। पहले दस दिन रहमत का अशरा। दूसरा अशरा मगफिरत और अंतिम दस दिन जहन्नुम से मुक्ति। अर्थात‌् रहमत के अशरे में अल्लाह आपकी इबादतों के बदले आप पर रहमत बरसाता है। दूसरे अशरे से आपकी इबादतों के बदले आपको गुनाहों से माफी मिलती है। तीसरे अशरे में खुदा द्वारा आप पर जहन्नुम आग हराम की जाती है।

इस महीने इबाद‌तों और अन्य कार्यकलापों की बदौलत हर ओर एक अजब ही रौनक दिखाई देती है। मस्जिदों की सजावट और रमज़ान में प्रयोग किए जाने वाले विशेष खाद्य पदार्थों से सजे बाज़ार बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कहीं सेवंई की दुकानें सजी होती हैं तो कहीं खजूर और फलों की ठेलियां। इफ्तार से कुछ समय पूर्व तरह-तरह के पकवान भी बाज़ारों की रौनक बढ़ा देते हैं।

इस माह की यह विशेषता है कि इसकी बरकत से कई लोगों की आय का प्रबंध हो जाता है। रोज़े नमाज से संंबंधित कई छोटी-बड़ी वस्तुओं की दुकानें व ठेले लगाकर अतिरिक्त कमाई की जाती है। वहीं इस महीने दान देने का प्रावधान है। लोग अपना व अपने परिवार का सदका अपनी जमा-पूंजी की ज़कात आदि निकालकर निर्धन लोगों की मदद करते हैं।

इस महीने रोज़ा रखने और अतिरिक्त इबादत करने से आत्मा व शरीर दोनों पवित्र हो जाते हैं। रोजा रखने से अनुशासन, सब्र, संयम, प्रेम आदि स्वतः हमारा आचरण का हिस्सा बन जाते हैं।

वहीं यह भी आवश्यक है कि हम कुछ बातों का ध्यान रखें तो ही रोज़े के सही लाभ को ग्रहण कर पाएंगे। सहरी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोट्रीन और फाइबर युक्त भोजन का सेवन करने से लंबे समय तक ऊर्जा बनी रहती है। अधिक गरिष्ठ भोजन इस समय लेना उचित नहीं। तली चीज़े लेने से प्यास लग सकती है। पानी का उचित सेवन डिहाइड्रेशन से बचाता है। इसके लिए पानी के अतिरिक्त पानी वाली सब्जियां व फल लेना भी फायदेमंद रहता है। इफ्तार में भी हल्का व पौष्टिक भोजन ही लाभ देगा। डीप फ्रायड चीजें व मसालेदार भोजन से परहेज़ ही उचित है, हल्का व्यायाम और भरपूर नींद का विशेष ख्याल रखा जाए। वहीं शुगर, हाई ब्लड प्रेशर व गर्भावस्था जैसी स्थिति में रोज़ा न रखना ही श्रेयस्कर है।

यदि उपर्युक्त बातों का ध्यान रखकर रोज़े रखे जाएं तो निःसंदेह यह हमारे तन-मन के लिए बहुत लाभदायक हैं। वैज्ञानिकों ने भी इनके महत्व को स्वीकारा है। रोज़े से हमारे पाचन-तंत्र को आराम मिलता है। उस वक्त शरीर की बची हुई एनर्जी शरीर के सेल को रिपेयर करने का काम करती है। इससे मधुमेह और रक्तचाप नियंत्रण में सहायता मिलती है। अतः यह निश्चित है कि हम सही तरीकों का प्रयोग करके रमज़ान के महीनों में रोज़े रखकर बहुत से लाभ अर्जित कर सकते हैं।

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