कॉल्विन कूलिज अपनी निजी ज़िंदगी में एक अत्यंत अंतर्मुखी और मितभाषी व्यक्ति थे। उनके इस स्वभाव से उनकी पत्नी तक खिन्न रहा करती थीं। एक बार पति-पत्नी दोनों चर्च (गिरजाघर) गए। लौटते समय उनकी पत्नी ने बातचीत शुरू करने के लिए पूछा, ‘क्या आपने आज का प्रवचन सुना?’ कॉल्विन कूलिज का छोटा-सा उत्तर था, ‘हां।’ पत्नी इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुईं। उन्होंने आगे पूछा, ‘क्या आप बता सकते हैं कि प्रवचन का मूल विषय क्या था?’ इस बार भी कूलिज का उत्तर संक्षिप्त ही रहा—‘पाप।’ पत्नी ने बात को और स्पष्ट करने की कोशिश की, ‘ठीक है, पर पादरी इस विषय में क्या कह रहे थे?’ काल्विन कूलिज ने शांत स्वर में उत्तर दिया— ‘वह इसके (पाप) विरोध में बोल रहे थे।’
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