एक दिन यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया—‘कौन व्यक्ति शोक नहीं करता?’ युधिष्ठिर ने उत्तर दिया– ‘जिसका मन नियंत्रण में होता है, वह शोक नहीं करता। नियंत्रित मन सुख और दुख दोनों से परे होता है।’ यक्ष ने दूसरा प्रश्न किया–‘किसकी मित्रता कभी क्षीण नहीं होती?’ युधिष्ठिर बोले–‘सज्जन और संस्कारी व्यक्तियों की मित्रता स्थायी होती है, क्योंकि वे एक बार की गई मित्रता को जीवनभर निभाते हैं।’ फिर यक्ष ने पूछा, ‘धरती से भारी और आकाश से ऊंचा क्या है?’ युधिष्ठिर ने उत्तर दिया–‘धरती से भारी है मां की ममता और आकाश से ऊंचा है पिता का अरमान, क्योंकि हर पिता अपनी संतान को अपने से आगे बढ़ते देखना चाहता है।’ यह सुनकर यक्ष समझ गए कि धर्मराज युधिष्ठिर ने कुछ ही शब्दों में ‘मानव धर्म की सच्ची व्याख्या’ कर दी।
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