बुशरा तबस्सुम
ईद रमज़ान का ईनाम है। रमज़ान के बारे में कहा जाता है कि इस माह की इबादत का सवाब अन्य दिनों से अधिक मिलता है। दिन भर रोज़ा रखना व रात में इबादत करना, क़ुरान की अधिक से अधिक इबादत करना, हर बंदे की मंशा रहती है कि अधिक से अधिक सवाब हासिल कर लिया जाए। लेकिन ध्यान रहे कि हम स्वयं को झूठ, फरेब से दूर रखें वर्ना इबादत अधूरी है। तो इस प्रकार महीने भर इबादत करने वाले बंदे के लिए ईद तोहफे में दी गई। लेकिन तोहफा तो सब के लिए है, तो उनका क्या, जिनके पास पेट भरने तक का साधन पर्याप्त नहीं, इसके लिए प्रावधान है कि जो सक्षम हैं वो दान करें, उनके लिए फितरा और ज़कात फर्ज़ किया गया, ज़कात का अर्थ कि वो धन जो आपकी ज़रूरत पूरी करने के बाद बच गया, साल भर तक जितना आपने जमा किया, उसका ढाई फीसदी दान कर दीजिए, ये सभी के लिए ज़रूरी है, परिवार में जितने सदस्य कमा रहे हैं, ये सबके लिए आवश्यक है। स्त्रियों के पास जो गहने हैं, उन्हें भी इनकी कीमत का ढाई प्रतिशत दान करना है। ज़कात इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, अर्थात अपरिहार्य, फितरा सदका है आपका जो रमज़ान के दौरान हुई भूल-चूक की भरपाई करेगा तथा ग़रीबों को भी सुविधा देगा कि वो ईद मना सकें। ये आप हैसियत के अनुसार कितना भी और किसी भी रूप में दे सकते हैं।
ईद मनाने का सबका एक-सा ही तरीका है, मीठे में सेंवईं या खीर और उसके अतिरिक्त हैसियत अनुसार पकवान, नये कपड़े और ईदी, सुबह-सवेरे ईदगाह में दो रकआत ईद की नमाज़ अदा करने के बाद दिन भर खाने-खिलाने का दौर चलता है, बड़ों के द्वारा अपने छोटों को ईदी दी जाती है।
ईद की तैयारी करते हुए हमें यह सोचना चाहिए कि केवल एक दिन के लिए हैसियत से अधिक खर्च करना कितना उचित है, यदि आवश्यकता से अधिक धन है भी तो किसी ग़रीब की ईद मनवा दी जाए,पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब ईद के दिन साफ और अच्छे कपड़े पहनते थे और मीठा खाते थे, अच्छे व साफ का अर्थ हम नये से लगाते हैं और मीठे का अर्थ कई-कई पकवानों से। पिछले दो वर्षों से कोरोना व लॉकडाउन के कारण लोगों ने घरों तक सीमित रहते हुए ईद मनाई, (तो क्या ईद न हुई) अतः इस वर्ष लोग जी जान से जुटे हैं कि कसर न रहे कोई, ईद अन्य कई मायनों में ईद है, चांद से पहले कई घरों में चांद निकलते हैं, नौकरियों के लिए घर से दूर हुए बच्चे एक-दो दिन पहले लौट आते हैं, तो अकेलेपन का रमज़ान मना रहे माता-पिता की ईद कुछ पहले से ही आरंभ हो जाती है। परंपरा जाने कहां से शुरू हुई होगी पर है तो कि ईद से कुछ दिन पूर्व भाई अपनी बहनों के ससुराल यथासम्भव ईदी ले जाते हैं, कपड़े, चूड़ियां, मेवे, सेंवईं आदि, मेरा विचार है ये धारणा भाई दूज से प्रभावित है। यही नहीं, भारत में मुस्लिम त्योहारों के मनाने के तरीकों में अकसर हिंदुत्व की झलक मिलती है, अन्य मुस्लिम देशों में त्योहार अलग ही तरीके से मनाए जाते हैं। त्योहार का मकसद मेल-जोल हो, खुशियों से हो और यकीन मानिए खुशी बांटने से सबसे अधिक होती हैं, बटोरने से नहीं।