परमार्थ की शिक्षा
गुरु ने अपने तीन शिष्यों को मनोयोग से संपूर्ण शिक्षा दी। शिष्यों ने भी गुरु के आश्रम में मन लगाकर ज्ञानार्जन किया। एक दिन गुरु ने तीनों शिष्यों को बुलाकर कहा कि तुम्हारी वेद-पुराणों व आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा पूर्ण हुई, जिसमें तुम सफल रहे। अब तुम्हारी शिक्षा की परीक्षा जीवन की कसौटी पर होगी। गुरु ने उन्हें एक तीर्थस्थल पर जाने को कहा। तीर्थस्थल दूर था और शिष्यों को वहां से रात को लौटना था। एक जंगल से गुजरते हुए तीनों ने एक रास्ते पर बहुत सारे कांटे पड़े देखे। पहला शिष्य कूदकर पार निकल गया। दूसरा शिष्य किनारे से रास्ता तलाशकर आगे बढ़ गया। तीसरे शिष्य ने कहा कि रात होने को है, हमारे बाद आने वाले पथिक इन कांटों से घायल हो सकते हैं। उसने पूरे यत्न से सारे कांटे निकालकर दूर फेंक दिए। तभी झाड़ियों के पीछे से गुरुदेव निकले और तीसरे शिष्य को आशीष दिया कि तुम्हारी शिक्षा पूर्ण हुई, अब तुम घर जाओ। उन्होंने कहा, ज्ञान का लक्ष्य ही मानव कल्याण है। उन्होंने दोनों शिष्यों को यह कहकर आश्रम भेज दिया कि तुम्हारी शिक्षा अभी अधूरी है।