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सात्विक भी होना चाहिए दान

दान का धर्म
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सनातन धर्म में दान को धर्म का मूल आधार माना गया है। गीता में तामसिक दान को निंदनीय बताया गया है, जो अयोग्य को, अनुचित समय और स्थान पर, अपमानपूर्वक किया जाए। ऐसा दान आध्यात्मिक पतन का कारण बनता है और समाज में भी दुष्प्रभाव छोड़ता है।

सनातन संस्कृति के समस्त आधारभूत ग्रन्थों में दान की महिमा का पग-पग पर व्यापक वर्णन किया गया है।

दान को धर्म का अनिवार्य अंग (स्कंध) माना गया है। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के सत्रहवें अध्याय में तामसिक दान को स्पष्ट करते हुए कहा है कि अनुचित स्थान पर, अनुचित समय पर, अज्ञानता (अविवेक) के साथ, अपमान करके तथा अयोग्य व्यक्ति को दिया गया दान तामसिक (तमोगुणी) दान कहलाता है।

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जब मनुष्य के अंतःकरण में तमोगुण का प्रभाव बढ़ जाता है, तब उसकी बुद्धि में अज्ञानता का संचार हो जाता है, जिससे उसकी विवेक करने की क्षमता क्षीण हो जाती है। ऐसी अवस्था में दिया गया दान तामसिक कहलाता है। किसी व्यक्ति को अपमानित करके दिया गया दान भी निरर्थक ही होता है। कुपात्र एवं अयोग्य व्यक्ति को दिया गया दान पूर्ण रूप से व्यर्थ माना गया है। जो दान के योग्य नहीं है, उस व्यक्ति को दान स्वरूप दी गई वस्तु, धन आदि का वह दुरुपयोग करता है, जिसका प्रभाव समाज पर भी पड़ता है। ऐसा दान दाता एवं ग्राही दोनों को अधोगति की ओर ले जाता है।

हमारे ऋषियों का चिंतन है कि जिस प्रकार बंजर भूमि में बोया गया बीज फलीभूत नहीं होता, उसी प्रकार अयोग्य व्यक्ति को अज्ञानवश दिया गया दान भी कभी फलीभूत नहीं होता — वह व्यर्थ ही चला जाता है। जिस प्रकार यज्ञ-कुंड में बची हुई भस्म पर घी की आहुति देना निरर्थक होता है, उसी प्रकार दुर्व्यसनी, आचरणहीन कुपात्र को दिया गया तामसिक दान भी पूर्णतः निष्फल माना गया है।

प्रत्येक व्यक्ति दान के महत्व से परिचित है, परंतु दान किस भावना से देना चाहिए, इससे आज भी अधिकांश लोग अपरिचित हैं। आजकल समाज में केवल अपने वैभव, पद और प्रतिष्ठा का प्रभाव दिखाने के लिए ही दान किया जाता है। दान-पुण्य करते समय दिखावे की प्रवृत्ति हमारे अंतर्मन में अहंकार को जन्म देती है, जिससे हमारा संपूर्ण दान तामसिकता की श्रेणी में चला जाता है और वह निष्फल हो जाता है।

विद्वानों का मत है कि हाथों की महिमा दान-पुण्य करने में है, परंतु तामसिक दान से मनुष्य के अंतःकरण में तामसिक वृत्तियों का ही प्रादुर्भाव होता है। तामसिक दान, मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति में बाधक माना गया है।

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