कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ने एक बार मुंशी प्रेमचंद से कहा, ‘वैसे तो आप कहते हो कि ईश्वर में मेरा यकीन नहीं है, किंतु साहित्य में बार-बार आप का प्रयास है - मनुष्य में देवत्व का प्रचार, दर्शन और उभार। भला यह क्या बात हुई?’ प्रेमचंद ने उत्तर दिया, ‘ईश्वर में यकीन करने की जरूरत उन्हें ही पड़ती है, जो मनुष्य में देवत्व का दर्शन नहीं कर सकते। यह तो अनुभव की बात है कि एक बुरा मनुष्य भी बिल्कुल बुरा नहीं होता। उसमें भी कहीं न कहीं देवत्व छुपा होता है। मैंने अपनी कलम से इस अनुभव को बस उभार दिया है, प्रकाशित कर दिया है।’
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