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ईमानदारी के हीरे

एकदा
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अरब का एक ऊंट व्यापारी अब्दुल ऊंट खरीद कर लाया, जो बहुत सुंदर ढंग से सजाया गया था। अब्दुल ने अपने नौकर को ऊंट की देखभाल के लिए कहा और निर्देश दिया कि उसकी काठी उतारकर उसे आराम करने दिया जाए। जैसे ही नौकर ने काठी उतारी, तो उसके नीचे मखमली कपड़े में लिपटे हुए बहुत सारे हीरे दिखाई दिए। नौकर ने यह बात अब्दुल को बताई। अब्दुल तुरंत वह पोटली लेकर उसके असली मालिक को लौटाने निकल पड़ा। इधर, नौकर हाथ लगे हीरे जाते देखकर बहुत दुखी हुआ। जब अब्दुल ने व्यापारी को जाकर सारा वृत्तांत बताया, तो व्यापारी, जो पहले से ही हीरे खोने के कारण बहुत परेशान था, यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने अब्दुल को इनामस्वरूप हीरे देने चाहे, लेकिन अब्दुल ने विनम्रता से इनकार कर दिया। व्यापारी ने बहुत आग्रह करते हुए कहा, ‘कम से कम एक हीरा तो स्वीकार कीजिए।’ इस पर अब्दुल ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, ‘मैं पहले ही दो हीरे अपने पास रख चुका हूं।’ यह सुनकर व्यापारी थोड़ा नाराज़ हो गया और तुरंत हीरों की गिनती की, लेकिन सारे हीरे पूरे थे। उसने हैरानी से पूछा, ‘आपने तो कोई हीरा लिया ही नहीं!’ अब्दुल ने उत्तर दिया, ‘मैंने दो हीरे—‘ईमानदारी’ और ‘आत्म-सम्मान’—अपने पास रख लिए हैं। अब मुझे भौतिक हीरों की आवश्यकता नहीं।’ व्यापारी अब्दुल की ईमानदारी और चरित्र को देखकर स्तब्ध रह गया।

प्रस्तुति : संदीप भारद्वाज

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