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प्रयागराज के ‘नगर देवता’ के रूप में पूज्य देव

वेणी माधव
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प्रयागराज का त्रिवेणी संगम केवल स्नान का स्थल नहीं, अपितु श्री वेणी माधव जैसे नगर देवता की आराधना का केंद्र है। संगम स्नान तब तक पूर्ण नहीं माना जाता, जब तक श्री माधव के दर्शन न हों। यह परंपरा त्रेता युग से आज तक अखंड रूप से चली आ रही है।

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हरि मंगल

भारतीय धर्मग्रंथों में प्रयागराज को धर्म, आस्था और संस्कृति के पावन स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। पतित पावनी गंगा और शस्य श्यामला यमुना के पावन संगम में डुबकी लगाने की कामना लेकर हर वर्ष करोड़ों लोग इस धर्म नगरी में पहुंचते है। संगम तट पर स्नान, दान और धार्मिक अनुष्ठान के बाद अधिकांश श्रद्धालु संगम के आसपास के विख्यात मंदिरों में स्थापित देवी देवताओं के दर्शन करते है। प्रयागराज में मान्यता है कि संगम में स्नान, कल्पवास, दान और अनुष्ठान के बाद संगम क्षेत्र में विराजते देवी-देवताओं के दर्शन आवश्यक है अन्यथा वर्णित पुण्य की प्राप्ति नहीं होती तथा धर्म यात्रा को अधूरा माना जाता है। संगम के समीप जिन प्रमुख देवी-देवताओं के मन्दिर को मान्यता है उनमें भगवान श्री वेणी माधव जी का मन्दिर प्रमुख है।

दारागंज में प्राचीन मंदिर

प्रयागराज में गंगा तट पर बसे दारागंज मुहल्ले के दशाश्वमेध घाट के समीप भगवान श्री वेणी माधव का अति प्राचीन मंदिर स्थित है। भगवान वेणी माधव के संबंध में दो तथ्य बहुत महत्वपूर्ण है। पहला वेणी माधव कोई नये देवता नहीं है अपितु स्वयं भगवान विष्णु है, जो प्रयागराज में श्री वेणी माधव या लोक प्रचलन की भाषा में ‘माधव’ के रूप में विराजमान हैं और दूसरा वह इस पावन नगरी के अधिष्ठाता है और ‘नगर देवता’ के रूप में पूज्य है। प्रयागराज में भगवान माधव के कुल 12 स्वरूप है जो नगर के अलग-अलग स्थानों पर विराजमान है लेकिन सर्वाधिक लोक मान्यता दारागंज में स्थापित विग्रह की है जहां प्रतिदिन देश-विदेश से हजारों लोग दर्शन पूजन के लिये आते हैं। इस मंदिर में भगवान वेणी माधव के साथ त्रिवेणी जी की प्रतिमा स्थापित है। यह विग्रह काले शालिग्राम शिला के हैं जिसे विश्व की दुर्लभ प्रतिमा कहा जाता है। विग्रह में भगवान वेणी माधव के साथ त्रिवेणी जी भी शंख और चक्र धारण किये हुये हैं, तमाम श्रद्धालु इन्हें लक्ष्मी नारायण का भी नाम देते है। इस मन्दिर के मुख्यद्वार पर सुनहरे अक्षरों में ‘नगर देवता’ और ‘माधो सकल काम साधो’ अंकित है। गुरुवार के दिन दर्शन करने का विशेष महत्व है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण करने या संकट से मुक्ति के लिये प्रार्थना करते है और ‘माधो सकल काम साधो’ की गुहार लगाते है।

प्रचलित लोक कथा

भगवान श्री विष्णु के ‘माधव’ नामकरण को लेकर एक कथा का उल्लेख किया जाता है। त्रेता युग में गजकर्ण नाम का एक राक्षस हुआ करता था जिसके अत्याचार से तीनों लोक के देवी-देवता,ऋषि-मुनि, नर-नारी सहित सभी पीड़ित थे। गजकर्ण के अत्याचार से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। अत्याचार का अंत नहीं दिखाई पड़ने पर सभी लोग भगवान श्री विष्णु के पास गये और अत्याचार से बचाने की गुहार लगाई। भगवान श्री विष्णु ने नारद जी से गजकर्ण के अत्याचार से लोगों को बचाने के लिये उपाय खोजने को कहा। नारद जी अपनी शैली में गजकर्ण का गुणगान करते हुए उसके दरबार में गये। गजकर्ण उस समय खुजली जैसे असाध्य रोग के कारण बहुत कष्ट में था। नारद जी ने उसे गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम में स्नान करने के लिये कहा। गजकर्ण प्रयाग आकर त्रिवेणी संगम में स्नान किया। स्नान के पश्चात चमत्कारिक रूप से उसका रोग और कष्ट दूर हो गया। त्रिवेणी संगम के जल का चमत्कार देख कर गजकर्ण नीयत खराब हो गई और किंवदंती है कि त्रिवेणी को अपने लोक में ले जाकर मनोवांछित फल प्राप्त करने की मंशा से तीनों ही नदियों का जल पी गया। पावन नदियों का जल पी जाने से पानी के लिये हाहाकार मच गया। सभी देव, दानव एक बार फिर भगवान विष्णु के दरबार में पहुंच कर गुहार लगाई। भगवान श्री विष्णु गजकर्ण के इस कार्य से बहुत आक्रोशित हुए और अपने वाहन गरुण पर सवार होकर मंगलवार के दिन प्रयाग पहुंचे। गजकर्ण भगवान विष्णु से युद्ध करता रहा परन्तु तीसरे दिन गुरुवार को श्री विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। वध होते ही त्रिवेणी जी का जल बाहर आ गया। राक्षस के संहार के बाद श्री विष्णु जी वापस अपने लोक जाने लगे तो तीर्थराज प्रयाग ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना किया कि प्रभु यदि भविष्य में इस प्रकार का संकट फिर आया तो हमारी रक्षा कौन करेगा, इसलिये आप प्रयाग में ही रहिये और हम लोगों की रक्षा कीजिये। भगवान श्री विष्णु ने तीर्थराज प्रयाग की प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा कि आज से मैं वेणी माधव के रूप में प्रयाग की रक्षा करूंगा। उसी समय से भगवान श्री वेणी माधव प्रयाग के रक्षक के रूप में विराजमान और विख्यात हैं।

द्वादस माधव

श्री वेणी माधव प्रयाग में त्रिवेणी (संगम) स्नान के लिये आने वाले भक्तों को आसुरी शक्तियों से बचाने के लिये नगर के अलग अलग दिशा और क्षेत्रों में कुल 12 रूपों में विराजमान हुए। काल खंड़ के तमाम झंझावातों से जूझने के कारण कई मन्दिरों में श्री माधव की मूर्तियां खंड़ित या स्थानाच्युत हो गई और मन्दिरों के समक्ष भी पहचान के संकट खड़े हुए। वर्ष 2018 में श्री वेणी माधव के सभी मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया गया है। धार्मिक ग्रंथों में भी श्री वेणी माधव के 12 स्वरूपों का विवरण मिलता है। द्वादस माधव के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को जन-जन तक पहुंचाने के लिये वर्ष 2013 से द्वादश माधव की पांच दिवसीय परिक्रमा यात्रा जन सहयोग से निकल रही है। इस अवधि में उनके द्वारा गदा माधव और पदम माधव की खंडित मूर्तियों के स्थान पर नूतन विग्रह स्थापित कराया गया।

त्रेता युग से स्थापित

प्रयागराज में श्री वेणी माधव जी के महत्व को अनादि काल से ऋषियों-मुनियों के साथ ही देवी-देवताओं ने भी स्थापित किया है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रयागराज के जिन आठ पावन स्थलों का वर्णन किया गया है उसमें श्री वेणी माधव जी का भी जिक्र है।

मान्यता है कि त्रेता युग में प्रभु श्रीराम वनवास जाते समय श्री वेणी माधवजी के दर्शन के लिये आये थे। महषि भारद्वाज के बारे में कहा जाता है कि वह श्री वेणी माधव सहित सभी द्वादश माधव के दर्शन और परिक्रमा किया करते थे। मीराबाई ने अपने कई प्रसिद्ध भजनों की रचना इसी तीर्थस्थल पर रह कर की थी। वर्तमान समय में प्रतिदिन बड़ी संख्या में संगम स्नान को आने वाले श्रद्धालु यहां आकर दर्शन पूजन करते है। माघ मास में संगम तट पर चलने वाले माघ मेला, कुंभ और महाकुंभ में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखाें करोड़ों में होती है। दरअसल मान्यता है कि संगम स्नान का फल श्री वेणी माधव भगवान का दर्शन करने के बाद ही मिलता है। माघ मेले का कल्पवास भी तभी पूर्ण फलदायी है जब कल्पवास समाप्त होने पर कल्पवासी वेणी माधव का दर्शन करे।

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