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असुरी शक्तियों के उन्मूलन को अवतरण

आद्य महाशक्ति
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शक्ति की अनन्य साधना से सभी गुण सहज प्राप्त हो जाते हैं। स्वास्थ्य, सुख, सफलता, ज्ञान, संपन्नता देने वाली भगवती महाशक्ति ही है। योगीजन इंद्रियों की अधिष्ठात्री रूप में कुंडलिनी मानकर षटचक्र भेदन द्वारा कुंडलिनी रुपा शक्ति जाग्रत करते हैं जो मूलाधार चक्र में स्थित मानी जाती है, वहीं महाशक्ति विश्व के कण-कण में पुष्प की सुगंधि की भांति व्याप्त है।

आद्य महाशक्ति के दस महाविद्या रूप बतलाये गये हैं। इन रूपों में ही मां दुर्गा के जो अवतार हुए और उन्होंने जिस तरह से असुरों तथा असुरी शक्तियों का नाश किया वह शक्तिस्वरूपा हमारे लिए हमेशा शुभ का संदेश ही लाती है। नवरात्रि भी इसी संदेश का एक अंग कहा जा सकता है।

वैदिक साहित्य के अनुसार नवरात्रि का तात्पर्य है नौ रातें। मानवीय काया में नौ द्वार अर्थात नौ इंद्रियां है। अज्ञानतावश दुरुपयोग के कारण उनमें जो अंधकार छा गया है उसे अनुष्ठान करते हुए एक रात्रि में एक एक इंद्रिय के ऊपर विचारना उनमें संयम, साधना तथा सन्निहित क्षमताओं उभारना ही नवरात्रि की साधना कहलाती है। नवरात्रि पर्व के साथ दुर्गा अवतरण की कथा जुड़ी है। जब असुरों द्वारा पराजित हो ब्रह्मा ने देवताओं को संगठित कर संघ शक्ति के रूप में दुर्गा का अवतरण किया, सुरतत्व की स्थापना करने की।

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संहार करने के लिए अवतार

साधुजनों की रक्षा के लिए विष्णु को अनेक रूपों में अवतार लेना पड़ा तथापि अनेक बार ऐसे अवसर आये जब पराक्रम से काम नहीं चला। विष्णु को मोहनी रूपवती नारी का रुप धारण करना पड़ा। जब-जब असुरों की ओर से गंभीर संकट आया तब-तब महाशक्ति ने अष्टभुजी रूप में महिषासुर का संहार किया। पार्वती के शरीर से प्रकट महाकाली ने राक्षसों का अंत किया। अंततः विश्व का उद्धार जन्मदात्री, पालन करने वाली मातृ शक्ति द्वारा ही हुआ। दृष्टों का संहार भी आतंक मुक्त सृष्टि के पालन का अंग है।

महाशक्ति के तीन रूप

महाशक्ति को जगजननी प्रतिपादित करते हुए सृष्टि के सृजन, पालन तथा संहार के लिए क्रमश महासरस्वती, महालक्ष्मी तथा महाकाली को आद्य महाशक्ति के तीन रूप इंगित किये गये हैं। यह तीनों रूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश से भिन्न हैं। आद्य महाशक्ति के दस महाविद्या रूप चतलाये गये हैं। काली, तारा षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्न मस्ता, घूर्मावती, बगला, मातंगी, भैरवी तथा कमला। इसी प्रकार दुर्गा के नौ रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

विश्व का आधार शक्ति

शक्ति की अनन्य साधना से सभी गुण सहज प्राप्त हो जाते हैं। स्वास्थ्य, सुख, सफलता, ज्ञान, संपन्नता देने वाली भगवती महाशक्ति ही है। योगीजन इंद्रियों की अधिष्ठात्री रूप में कुंडलिनी मानकर षटचक्र भेदन द्वारा कुंडलिनी रुपा शक्ति जाग्रत करते हैं जो मूलाधार चक्र में स्थित मानी जाती है, वहीं महाशक्ति विश्व के कण-कण में पुष्प की सुगंधि की भांति व्याप्त है। नवदुर्गा के नौ रूपों की नवरात्रि में उपासना अर्चना व्यक्तिगत तथा समष्टिगत जीवन, समाज में व्याप्त अराजक तत्वों, विध्न बाधाओं, आतंक को नष्ट करने तथा कल्याण एवं शांति हेतु शक्ति संचय करने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने पर चैत्र में तथा दक्षिणायण स्थिति में शारदीय नवरात्र की व्यवस्था की गई है।

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