राहुल सांकृत्यायन हिंदी के एक प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। वर्ष 1948 में बंबई में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक सम्मेलन होना था, जिसकी अध्यक्षता राहुल सांकृत्यायन को करनी थी। राहुल जी की अपनी ही पार्टी भाकपा ने उनके हिंदी के समर्थन में लिखे भाषण के कुछ अंशों पर असहमति जाहिर की और उसे अपने भाषण से निकालने के लिए कहा। सांकृत्यायन ने पार्टी को अपने भाषण से हिन्दी के समर्थन में लिखे अंशों को हटाने से मना कर दिया। अपने हिन्दी प्रेम के चलते बहुत राजनीतिक दबावों के बाद भी वह टस से मस नहीं हुए। दरअसल राहुल जी भारतीय भाषाओं में हिंदी को सर्वश्रेष्ठ स्थान देना चाहते थे। हालांकि इस प्रकरण के बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। वह हिंदी के प्रबल समर्थक थे। वह कहते थे ‘मैंने नाम बदला, वेशभूषा बदली, खानपान बदला, सम्प्रदाय बदला, लेकिन हिंदी के संबंध में मैंने विचारों में कोई परिवर्तन नहीं किया।’
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा