भगवान विश्वकर्मा, जिन्हें प्रथम शिल्पकार और दिव्य वास्तुकार माना जाता है, की जयंती पर भारत में मशीनों, उपकरणों और श्रमिकों की पूजा की जाती है। यह दिन मेहनत, कौशल और नवाचार का महत्त्व दर्शाता है।
भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम शिल्पकार और दिव्य वास्तुकार माना जाता है। कहा जाता है कि इन्होंने ही इंद्रपुरी, द्वारका, हस्तिनापुर और लंका का भव्य निर्माण किया था। इसलिए हर साल विश्वकर्मा जयंती को भारत में मशीनों, काम के उपकरणों और शिल्प गढ़ने वाले औजारों की पूजा का आयोजन होता है। इस वर्ष विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन दफ्तरों, कारखानों आदि में विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है, जिसमें भगवान विश्वकर्मा की आराधना के साथ-साथ मशीनों, उपकरणों और रोजी-रोटी के विभिन्न संसाधनों की पूजा की जाती है। पूजा के बाद उस दिन इन उपकरणों, औजारों आदि का उपयोग नहीं किया जाता ताकि उन्हें आराम मिल सके। इसलिए उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत के अधिकांश कारखानों, उद्यमी स्थलों आदि में विश्वकर्मा जयंती के दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है।
यह दिन देश के मजदूरों, शिल्पियों, इंजीनियरों, मैकेनिकों और आर्किटेक्ट आदि के लिए विशेष महत्व रखता है। यह मेहनत और कौशल का पर्व है। इस दिन कारखाने, कार्यशालाएं, दफ्तर और तकनीकी संस्थान खूब सजाए जाते हैं। क्योंकि आज के दौर में दफ्तरों में ज्यादातर काम कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल और विभिन्न आधुनिक मशीनों के माध्यम से होता है, इसलिए इस दिन इन तकनीकी मशीनों की भी पूजा की जाती है। यह दिन वास्तव में कामगारों के सामूहिक भोज, मेल-मिलाप और विश्राम का अवसर माना जाता है, जिससे औद्योगिक सद्भाव और सामाजिक एकजुटता बढ़ती है।
विश्वकर्मा पूजा भारत में केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह श्रम, तकनीक, कारीगरी और नवाचार की पूजा एवं प्रतिष्ठा का दिन है। कोई भी समाज चाहे कितना ही विकसित हो, उसकी नींव मेहनतकश हाथों की मेहनत और कारीगरी पर टिकी होती है। ऐसे में विश्वकर्मा का दिन देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले श्रमिकों और कारीगरों की प्रतिष्ठा का दिन है।
भगवान विश्वकर्मा को भारतीय परंपरा में प्रथम इंजीनियर और प्रथम शिल्पी माना जाता है। इसलिए विश्वकर्मा पूजा को आधुनिक भारत में सम्पन्न होने वाली औद्योगिक श्रम की पूजा का दिन माना जाता है। आज़ादी के बाद भारत में बड़े पैमाने पर देश के नवनिर्माण का जो सिलसिला चला, यह दिन उस सिलसिले के लिए कृतज्ञता ज्ञापन करने का दिन भी है। माना जाता है कि जहां औजार पूजे जाते हैं, वहीं सृजन संभव होता है और वहीं समृद्धि का बसेरा होता है। इस प्रकार देखें तो विश्वकर्मा पूजा का दिन वास्तव में लक्ष्मी पूजा का भी दिन है। देश के शेयर बाजार में भी विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा होती है, उनकी प्रतिमा पर पुष्पहार चढ़ाए जाते हैं और शेयर बाजार भी एक-दो घंटे इस पूजा की प्रतिष्ठा में कामकाज रोक देता है।
इस प्रकार निवेश की दुनिया में भी भगवान विश्वकर्मा के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। 20वीं सदी यदि विशुद्धता और निर्माण की सदी थी, तो 21वीं सदी निर्माण के नए नवाचार और तकनीकी श्रेष्ठता की सदी है, और इन दोनों सदियों में श्रम और शिल्प के देवता भगवान विश्वकर्मा के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा देखी जाती है। क्योंकि खुशहाली की संस्कृति श्रम की प्रतिष्ठा पर ही टिकी है। यही कारण है कि तकनीकी उत्थान और नवाचार का नया विधान भगवान विश्वकर्मा की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। भगवान विश्वकर्मा हमें याद दिलाते हैं कि कोई भी देश केवल विचारों से महान नहीं बनता, बल्कि उसे महान बनने के लिए श्रम और कौशल के बल पर भरोसा करना होता है। यही बल किसी देश को महान बनाता है। औद्योगिक मजदूरों की मेहनत से ही कोई देश समृद्धि की रोशनी से जगमगाता है।
विश्वकर्मा पूजा हमारे लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दिन हमें केवल काम करने का उपदेश ही नहीं देता, बल्कि यह भी सिखाता है कि काम केवल जीविका नहीं होता, बल्कि यह भव्यता, सुंदरता और मानवीय मूल्यों का सृजन भी होता है, जिसे ईश्वरीय सृजन की प्रतिष्ठा दी जाती है। आज यदि भारत की प्रतिष्ठा दुनिया में तेजी से बढ़ती हुई और विश्व शक्ति बनने वाले देशों में है, तो इसमें सबसे बड़ा योगदान देश के श्रमिकों, कारीगरों, योजनाकारों, वास्तुकारों और इंजीनियरों का है। भगवान विश्वकर्मा इन सभी श्रमजीवी लोगों के आदर्श और संरक्षक हैं। इन्हीं लोगों ने अपनी मेहनत और लगन से भारत को पूरी दुनिया में प्रतिष्ठा दिलाई है। इस प्रकार देखें तो विश्वकर्मा जयंती का दिन भारत को प्रतिष्ठा दिलाने वाले श्रमिकों और श्रम साधकों की प्रतिष्ठा का दिन भी है। इ.रि.सें.