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देवताओं के महाकुम्भ में सांस्कृतिक उत्सव

कुल्लू दशहरा
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रमेश पठािनया

अक्तूबर का महीना भारत के कई भागों में तरह-तरह के उत्सव लेकर आता है। लेकिन दशहरा इनमें सबसे प्रमुख है।

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उत्तर भारत में हिमाचल के कुल्लू का दशहरा, जिसे विजयादशमी या विदा दशमी भी कहा जाता है, अपने आप में अनूठा है।

आस्था का जन-सैलाब

जब बाकी जगहों पर दशहरा खत्म होता है, तो कुल्लू में रघुनाथ जी की रथयात्रा के साथ कुल्लू का दशहरा शुरू होता है। इसमें कुल्लू घाटी के दराज के क्षेत्रों से आए देवी-देवता रघुनाथ जी की रथयात्रा में शामिल होते हैं। पूरी वादी में ढोल-नगाड़े और श्री राम जी की जय जयकार के उद्घोष सुनाई देते हैं। एक बड़ा जनसैलाब रघुनाथ जी की रथयात्रा में शामिल होता है।

रघुनाथ जी की रथयात्रा

रघुनाथ जी की अंगुष्टाकार मूर्ति, जिसे अयोध्या से लाया गया था और जो रघुनाथ जी के मंदिर रघुनाथ पुर में विराजमान रहती है, दशहरा के दौरान राजपरिवार के सदस्य एक भव्य यात्रा में कुल्लू रथ मैदान में लाते हैं। फिर राजपुरोहित इसे रथ पर विराजमान करते हैं। पूरी वादी श्री रघुनाथ और देवी-देवताओं के रंग में रंग जाती है। यह रथयात्रा जिसे हजारों लोग खींचते हैं, इसे देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है। यह रथयात्रा दूसरे मैदान, जहां रघुनाथ जी का शिविर बना है, वहां तक जाती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

दशहरे की शुरुआत कुल्लू के राजा जगत सिंह ने 16वीं शताब्दी में की थी। अब राजा महेश्वर सिंह कुल्लू के दशहरे में राजपरिवार का प्रतिनिधित्व करते हैं।

देवी-देवताओं की भूमिका

कुल्लू के दशहरे में कुल्लू घाटी की देवी, जिन्हें दादी मां भी कहते हैं, हिडिम्बा देवी और श्री बिजली महादेव की अहम भूमिका है।

सात दिन का उत्सव

प्राचीन समय में कुल्लू का दशहरा पहले एक दिन का हुआ करता था, लेकिन अब यह दशहरा सात दिन तक चलता है। कुल्लू दशहरा में रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले नहीं जलाए जाते।

सांस्कृतिक उत्सव भी

कुल्लू का दशहरा, जिसे अंतर्राष्ट्रीय लोकनृत्य उत्सव भी कहा जाता है, अपने धार्मिक अनुष्ठानों, लोक नृत्य और देश-विदेश से आए कलाकारों द्वारा किए गए कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है। कुल्लू के दशहरे में सामूहिक नाटी का विश्व कीर्तिमान स्थापित है।

कार्यक्रमों की विविधता

सात दिन चलने वाले इस उत्सव में गीत-संगीत, खेल-कूद और विभिन्न देशों की सांस्कृतिक झांकियां, खानपान और बड़ा व्यापारिक मेला लगता है। कृषि, हस्तकरघा और कई प्रदर्शनियां लगती हैं। श्री लाल चंद प्रार्थी द्वारा स्थापित कला केंद्र में रंगारंग कार्यक्रम होते हैं।

देवी-देवताओं का महाकुम्भ

इस बार अगर आप कहीं और नहीं जा रहे हैं और आपको सच में देवभूमि को समीप से देखना है, देवी-देवताओं का महाकुम्भ देखना है, रघुनाथ जी की प्रतिमा को देखना है, उनकी आरती में भाग लेना है और हिमाचल की संस्कृति को देखने आए लाखों लोगों के महाकुम्भ में शामिल होना है, तो कुल्लू दशहरा में आएं। दिल्ली-चंडीगढ़ से कुल्लू बहुत सुंदर और सुगम राष्ट्रीय उच्च मार्ग से जुड़ा है। दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून, जयपुर, अमृतसर से वायु सेवा भी उपलब्ध है। चंडीगढ़ तक आप रेल सेवा से भी आ सकते हैं।

सुहाना मौसम

मौसम बहुत सुहाना हो रहा है। आपको हल्के ऊनी वस्त्र लाने होंगे, जैसे एक जैकेट या कोट, अगर आप मनाली या दूसरी जगहों पर भी जाना चाहें।

तिथियां

इस बार यह उत्सव 13 अक्तूबर से शुरू होगा और 19 अक्तूबर तक चलेगा। दशहरा उत्सव कमेटी ने 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजे हैं। नवरात्रि उत्सव के बाद जिला भर से देवी-देवता ढालपुर के लिए प्रस्थान करेंगे।

यात्रा के दौरान रस्सी खींचने के लिए 18 साल से कम उम्र के किशोर और 60 साल से अधिक उम्र के लोग मैदान में प्रवेश नहीं लेते। यह नियम पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने तय किए हैं ताकि इस उत्सव को पूरी सुरक्षा के बीच मनाया जा सके।

सही मायनों में कुल्लू का दशहरा महोत्सव देश में मनाये जाने वाले एेसे अन्य उत्सवों से कई मायनों में विशिष्ट है। स्थानीय देवी-देवताओं की आस्था के संगम के साथ यह प्रभु रघुनाथ का उत्सव उमंग व उल्लास के रंग में रंग जाता है। यह विशिष्टता ही इसे विश्व प्रसिद्ध बनाती है। सात दिन तक चलने वाले संगीत व सांस्कृतिक कार्यक्रम इस उत्सव को व्यापक आधार प्रदान करते हैं। स्थानीय उद्यमियों व उत्पादकों के लिये अपने उत्पाद बेचने का भी यह सुअवसर होता है। कृषि, हथकरघा व फल उत्पादों के लिये नया मंच उत्पादकों को आर्थिक संबल दे जाता है। यही वजह है कि एक धार्मिक उत्सव सांस्कृतिक समृद्धि व आर्थिक संपन्नता का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

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