मनुष्य की उत्पत्ति के पश्चात विधाता ने उसे सचेत करते हुए कहा— वत्स, जाओ और संसार के सभी प्राणियों के साथ हिलमिल कर रहना और सत्कर्म करते हुए स्वर्ग और अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करना। बुरे कर्मों से डरना और ऐसा कुछ न करना कि अंत समय में तुम्हें अपने जीवन भर के कर्मों का पछतावा हो। मनुष्य ने प्रार्थना की— हे प्रभु! कृपया मुझे समय-समय पर चेतावनी देते रहना ताकि अगर मैं गलत राह पर चल रहा होऊं तो संभल जाऊं। ‘तथास्तु’ कहकर विधाता ने मनुष्य को धरती पर भेज दिया। नीचे आकर तो मनुष्य भोग-विलास और स्वार्थ में ऐसा डूबा कि सब कुछ भूल गया। अंत समय आया तो यमदूत उसे उठाकर विधाता के सम्मुख ले गए। मनुष्य विधाता के आगे गिड़गिड़ाता हुआ बोला— प्रभु, मैंने तो कहा था कि मृत्यु से पूर्व मुझे सचेत कर देना ताकि मैं अपने बचे-खुचे कार्य पूर्ण करके कुछ धर्म-कर्म भी कर सकूं। विधाता हंसकर बोले— उम्र के साथ-साथ तेरी श्रम शक्ति कम होने लगी थी, आंखों से कम दिखने लगा था, बाल सफेद होकर झड़ने लगे थे और अंत में सारे दांत झड़ने लगे थे। क्या यह चार संकेत पर्याप्त नहीं थे स्वयं को संभालने और सत्कर्म की ओर अग्रसर होने के लिए। भविष्य में भी यही चारों संकेत मनुष्य को अंत समय निकट आने पर चेतावनी स्वरूप मिलते रहेंगे। प्रस्तुति : मुकेश कुमार जैन