छठ पर्व केवल सूर्योपासना का नहीं, बल्कि पारिवारिक स्नेह और समानता का उत्सव है। इस पावन व्रत में मातृत्व, श्रद्धा और संवेदना के साथ बेटियों के सुख, सुरक्षा और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। लोकगीतों और परंपराओं में छठी मैया से बिटिया की मुस्कान की कामना रची-बसी है।
ईश्वरीय आस्था का भाव पूरे परिवार की कुशलकामना से जुड़ा होता है। पर्वों के पूजन-अर्चन में देश के हर हिस्से में ही बिना किसी भेद के स्वजनों की रक्षा-सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है। बेटे-बेटी का अंतर भी संभवतः सामाजिक परिवेश की बदलती स्थितियों के चलते बना| असुरक्षा और असंवेदनशील माहौल के चलते परिवार और माता-पिता को बिटिया की ज्यादा चिंता रहने लगी। ना चाहते हुए भी घर की लाडलियों का जीवन सीमित परिधि में बंध गया। बेटी का जन्म ही चिंता का कारण बनने लगा। जबकि हमारी परम्पराओं में बहुत से पर्व बेटियों की सलामती से जुड़े हैं। अपने आराध्य के समक्ष कितने की हाथ घर-आंगन में बिटिया की मुस्कुराहट बिखरने की प्रार्थना करने के लिए भी जुड़ते हैं। प्रकृति के पूजन का सबसे सुंदर और व्यावहारिक भाव लिए छठ पर्व भी ऐसा ही एक अनूठा त्योहार है। इस पावन पर्व पर बेटी के जन्म की कामना की जाती है। संतान की रक्षा करने वाली देवी छठी माता से बेटियों की रक्षा के लिए भी मन से प्रार्थना की जाती है। व्यावहारिक धरातल पर देखें तो ईश्वरीय आस्था से जुड़ा यह भाव समानता की उस सकारात्मक सोच को बल देता है, जो समय के साथ आए तकलीफदेह बदलावों के चलते भेदभाव के आवरण तले ढक गई।
स्त्री मन से जुड़ी मान्यताएं
दीपपर्व की उजासमयी छटा के बाद षष्ठी तिथि से शुरू होकर चार दिन तक चलने वाला छठ पूजा पर्व कई मायनों में विशेष है। अपने गांव-घर से जोड़ने वाला छठ पूजा का त्योहार बेटी मांगने का पर्व भी कहा जाता है। व्रती महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले लोकगीतों में भी छठी मैया से अपने परिवार में बेटियों के जन्म की कामना की बात समाहित है। निस्संदेह, मातृत्व और स्त्रीमन से जुड़ी मान्यताओं का यह भी एक प्यारा पहलू ही है। 'रुनकी-झुनकी बेटी मांगीला' जैसे लोकगीत अपने आंगन में बेटियों के आगमन को सम्बोधित भाव-चाव लिए हैं। इसी गीत में बेटी से सुखमय जीवन से लिए शिक्षित जीवनसाथी चाहने की बात भी शामिल है। 'पढ़ल पण्डितवा दामाद' जैसे शब्द बेटियों के लिए जीवनभर की खुशहाली और समृद्धि की कामना करने जुड़े हैं। समानता का यह चेतनामय भाव छठ पूजा के पर्व की अहमियत और बढ़ा देता है। नहाय-खाय की रीत के साथ शुरू होने वाले लोकपर्व में खरना, संध्या अर्घ्य और प्रातः कालीन अर्घ्य के साथ अपने आराध्य के समक्ष नत व्रती बेटों की ही नहीं बेटियों की भी कुशलता की प्रार्थना करते हैं।
मन की साझीदार बेटियां
छठ पर्व पर महिलाएं अपने घर-परिवार की सुख-समृद्धि मांगती हैं। अपनी संतान को बीमारी, विपत्ति या किसी भी तरह के कष्ट से बचाने के लिए यह यह अनुष्ठान करती हैं। इसी कठिन अनुष्ठान में संकल्पित मन से भगवान सूर्य से बिटिया भी मांगी जाती है। बेटी की रक्षा-सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है। असल में देखा जाए तो सदा से ही बेटियां अभिभावकों के मन की सच्ची साझीदार होती हैं। दुनियावी उलझनों और परेशानियों के बावजूद अभिभावकों का मन बेटियों से गहराई जुड़ा होता है। माता-पिता को यह साथ-स्नेह खुलकर मन की बात कहने का कोना सा लगता है। ऐसे में सुखद ही है कि तन और मन से बिल्कुल शुद्ध होकर किया जाने वाला यह कठिन व्रत बेटियों से जुड़ा आत्मीय भाव भी लिए है। परम्परागत और आध्यात्मिक पक्ष को भी देखें तो हमारे यहां शक्ति पूजा की रीत रही है। माता आदिशक्ति के रूप में बेटियों की पूजन की परम्परा है। छठी मैया की अपरंपार महिमा का गुण गाते गीतों में भी अपनी लाडलियों से जुड़ाव की यही मिठास झलकती है। घर में उनका जन्म परिवार को पूर्णता देने वाली खुशी जैसा होता है। तभी तो सदियों पुराने लोकगीतों में भगवान भास्कर से की गई प्रार्थना में पांच पुत्तर, अन्न, धन और लक्ष्मी के साथ बेटी भी जरूर से मांगने की बात शामिल है। ऐसी बातें छठ से जुड़े रीति-रिवाजों में बेटियों एक प्रति मौजूद शुभेच्छा के भाव-चाव से मिलवाती हैं।
मान्यताओं का प्रगतिशील पक्ष
यूं तो छठ का महापर्व कई मामलों में खास है पर बेटियों से जुड़ी बातों को देखें तो यकीनन प्रगतिशील सोच को सामने रखता है। तभी तो बेटियों के सुख और सुरक्षा संग उनकी तरक्की के लिए भी पूरे रीति-रिवाज से अर्चना की जाती है। छठ पूजा के लिए बने दउरा में बेटियों के नाम पर भी सूप रखे जाते हैं। गौरतलब है कि सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बनाये गये दउरा में बांस के बने कई सूप रखने का रिवाज है। इन्हीं में एक सूप बेटियों के लिए भी होता है। अपनी मन्नतों के लिए रखे जाने वाले ये सूप ‘सुपती’ कहलाते हैं। दरअसल, छठ का पर्व समझाता है कि पारिवारिक व्यवस्था सही मायनों में हमारे जीवन का आधार स्तंभ है। इसे बेटे-बेटी के भेद से परे सुखी स्वस्थ संतानों के आपसी साथ से मजबूती मिलती है। पौराणिक मान्यता है कि माता सीता ने पहली बार छठ का व्रत किया था। यह भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने भी छठ पर्व किया था। छठ पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियव्रत के मृत पुत्र को छठी मैया की पूजा करने के बाद जीवन मिलने की भी है। असल में हमारी लोक परंपरा के अनुसार भगवान सूर्यदेव और छठी मैया भाई-बहन हैं। यही वजह है कि इस पर्व पर सूर्योपासना करने का विधान है।उगते ही नहीं डूबते सूरज को नमन किये जाने वाली इस उपासना में संतान के सुखमय जीवन की कामना सबसे अहम है।

