एक राज्य में राजा ने घोषणा की कि वह राज्य के मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा। मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग-रोगन और सजावट के लिए छह हजार का कर्ज लिया। राजा ने अमुक दिन मंदिर में दर्शन एवं पूजा-अर्चना की और आरती की थाली में चार आने दक्षिणा स्वरूप रखे और अपने महल प्रस्थान कर गये। यह देखकर पुजारी बड़ा दुखी हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा, इसलिए उसने एक उपाय सोचा! गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया कि राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी वाले दिन उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे और किसी को दिखाई नहीं। लोग समझे कि राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली शुरू हुई। यह बात राजा के कानों तक पहुंची। राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और पुजारी से निवेदन किया कि वह मेरी वस्तु को नीलाम न करे। मैं तुम्हें इसके बदले कई गुणा धन दूंगा। इस प्रकार राजा ने कई गुणा धन देकर अपनी इज्जत को बचाया। तब से यह कहावत बनी बंद मुट्ठी सवा लाख की खुल गई तो खाक की।
प्रस्तुति : सुभाष बुड़ावनवाला