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ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ और सांस्कृतिक समरसता का शहर

देवघर
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Deoghar: People gather to offer prayers to Lord Shiva on the occasion of the first ‘somwar’, Monday, of the holy month of 'shravan', at Baba Baidyanath Dham, in Deoghar district, Monday, July 14, 2025. (PTI Photo) (PTI07_14_2025_000034A)
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अलका ‘सोनी’

जब आपको हर तरफ से पेड़े, बेलपत्र और धूप की सुगंध का अनुभव होने लगे। चारों तरफ बाबा बैद्यनाथ के जयकारे सुनाई देने लगे। गेरुआ वस्त्र धारण किये भक्तों की कतार दिखे तब समझ जाइयेगा कि आप बाबा की पवित्र नगरी ‘देवघर’ में हैं। यह भगवान शिव और पार्वती की नगरी है। जहां हर शुभ अवसर पर भक्त बाबा बैद्यनाथ को न्योता देते हैं और मनौती पूरी करवाने के लिए उनके प्रांगण में धरना देकर भी बैठ जाते हैं। बाबा भी ऐसे भक्त वत्सल, जो अपने भक्तों की हर मुराद पूरी कर देते हैं। जी हां, ऐसा ही है शहर ‘देवघर’।

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बारह ज्योतिर्लिंगों में एक

बाबा की इस नगरी में ही बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ‘बैद्यनाथ मन्दिर’ है। यह न केवल देवघर बल्कि झारखंड का प्रमुख तीर्थस्थल है। साथ ही भारत में स्थित 51 शक्ति पीठों में से भी एक है। जहां माता सती का हृदय गिरा था। इसलिए बैद्यनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल है।

यह भारत के श्रीशैलम के अलावा दूसरा ऐसा तीर्थ है, जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक साथ हैं। देवघर में जुलाई और अगस्त (श्रावण मास) के बीच प्रत्येक वर्ष 7 से 8 लाख श्रद्धालु भारत के विभिन्न हिस्सों से आते हैं और सुल्तानगंज से गंगा का पवित्र जल कांवड़ में भरकर लाते हैं। जो देवघर से लगभग 108 किमी दूर है। यह जल भगवान शिव को कांवड़ यात्रा पूरी कर चढ़ाया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि जो भक्त यहां शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाने आते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए इस लिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही, यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहां महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर सिंदूर दान किया जाता है। बाबा बैद्यनाथ धाम परिसर में 22 मंदिर हैं। जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखते हैं।

ऐतिहासिक विवरण

देवघर एक हिंदी शब्द है और ‘देवघर’ का शाब्दिक अर्थ ‘देवों’ का निवास है। इसे संस्कृत ग्रंथों में हरितकिवन या केतकीवन के रूप में जाना जाता है।

हालांकि, पूरे बाबा मंदिर के निर्माता के नाम का पता नहीं चल पाया है लेकिन मंदिर के सामने वाले हिस्से के कुछ भागों को 1596 में गिद्धौर के महाराजा के पूर्वज पूरन मल द्वारा बनाया गया था। यहां श्रावण के महीने में कई भक्त पूजा के लिए सुल्तानगंज से देवघर तक गंगा जल लेकर भगवान शिव पर जल चढ़ाते हैं और बाबा बैद्यनाथ भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।

सांस्कृतिक संगम

देवघर झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी है। यहां विभिन्न संस्कृतियों और लोगों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहां बंगाली, बिहारी और स्थानीय लोगों की विभिन्न संस्कृतियों का मेल दिख पड़ता है। इसके अलावा गुजराती, पंजाबी और तमिल, मलयाली, तेलुगु, मारवाड़ी राजस्थानी समुदाय भी काफी संख्या में हैं जो लंबे समय से देवघर में रह रहे है। जिसके कारण भाषा में भी विविधता पाई जाती है।

बाबा की यह महिमा ही है कि उनके शृंगार पूजा में लगने वाला पुष्प-मुकुट, वहां जेलों में बंद कैदियों के हाथों से बनकर आता है। जिसे बाबा सहर्ष स्वीकार भी करते हैं। उन्हें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देकर। सावन मास में लगने वाले श्रावणी मेले में सभी समुदायों द्वारा आपसी मेल-जोल की अद्भुत मिसाल देखने को मिलती है। जब मुस्लिम समुदाय के लोग भी कांवड़ियों की सेवा में योगदान देते हैं। प्रमुख और सबसे ज़्यादा मनाए जाने वाले मेलों और त्योहारों में दीपावली, होली, छठ, दशहरा या दुर्गा पूजा, रामनवमी, ईद, सरस्वती पूजा, मकर संक्रांति आदि शामिल हैं।

प्रमुख दर्शनीय स्थल

नौलखा मंदिर : कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए नौ लाख रुपये का दान दिया गया था इसलिए इसका नाम ही नौलखा मंदिर कर दिया गया। एक और मत जो इसके नामकरण को लेकर है वह यह कि इसमें ‘नौ’ यानी ‘नौ’ और ‘लाखा’ यानी ‘लाख’ का मिश्रण है। यह राधा और कृष्ण की मूर्तियों को समर्पित है और यहां उनकी मूर्तियां हैं। अपने इतिहास और स्थापत्य सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध, इस मंदिर का निर्माण 1940 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के पथुरिया घाट के शाही परिवार की रानी चारुशिला के दान से हुआ था। यह मंदिर कोलकाता के बेलूर में रामकृष्ण मिशन का एक प्रोटोटाइप प्रतीत होता है।

त्रिकूट पहाड़ : त्रिकूट पहाड़, देवघर के दर्शनीय स्थलों की सूची में से एक है। 2500 फीट की ऊंचाई पर स्थित त्रिकूट पहाड़ तीन मुख्य चोटियों का समूह है, जो एक साथ त्रिशूल के आकार में खड़े हैं, इसलिए इसका नाम ‘त्रिकूट’ रखा गया है। इसकी तीन चोटियों के नाम तीन हिंदू देवताओं—ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम पर रखा गया है। जिन पर रोपवे या सीढ़ियों से जाया जा सकता है। ऐतिहासिक महत्व के अनुसार, त्रिकूट पहाड़ी पर एक बिंदु का नाम रावण का हेलीपैड है।

तपोवन : देवघर शहर के बाहरी इलाके में स्थित गुफाओं और पहाड़ियों की एक शृंखला है ‘तपोवन’। जिसके बारे में कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहां ऋषि वाल्मीकि प्रायश्चित के लिए रुके थे। यहां की एक गुफा में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर जिसे तपोनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, स्थित है। पहाड़ियों के नीचे एक सीता कुंड है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहां सीता माता स्नान करती थीं।

कैसे पहुंचे

ट्रेन के द्वारा (सबसे लोकप्रिय और सुविधाजनक) : जसीडीह जंक्शन— यह देवघर से लगभग 7  किमी दूर है और दिल्ली–कोलकाता इसकी मुख्य लाइन पर स्थित है। इससे देश के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पटना, रांची व वाराणसी से ट्रेनें आती हैं।

हवाई मार्ग : देवघर एयरपोर्ट- यह एयरपोर्ट शहर से 12  किमी दूर है, जिसे 2022 में खोला गया था।

इंडिगो ने भी दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, रांची, पटना, बेंगलुरु जैसे शहरों से नियमित उड़ानें शुरू की हैं।

सड़क मार्ग : देवघर विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों (एनएच  333, एनएच 114ए, एएच 133) से सशक्त रूप से जुड़ा हुआ है। प्राकृतिक दृश्यों को देखने के लिए सड़क मार्ग से जाना एक बढ़िया विकल्प हो सकता है। जिसके लिए आसानी से वाहन मिल जाते हैं।

इन सब मुख्य दार्शनिक स्थलों के अलावा शिवगंगा, नंदन पहाड़ और रिखिया आश्रम भी देवघर के दर्शनीय स्थलों में शामिल हैं। जहां देखने और अनुभव करने को बहुत कुछ है। यहां आने वाले लोग लौटते समय ढेर सारे सुखद अनुभवों के साथ, यहां बनने वाली लाह की सुंदर चूड़ियां भी लेकर जाते हैं।

देवघर, झारखंड के हर मन में बसा है। सावन और शिवरात्रि में तो भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है दर्शन और पूजन के लिए। इसलिए इसे झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी कहते हैं। जहां विभिन्न संस्कृतियां पानी और मिश्री की तरह घुल-मिलकर रहती हैं।

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