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चिंतन से चरित्र

एकदा
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रावण का पराभव हुआ और विभीषण का राज्याभिषेक हुआ। राजा विभीषण, कर्तव्य-पालन संबंधी निर्देश प्राप्त करने की जिज्ञासा से भगवान राम के समक्ष उपस्थित हुए। भगवान राम बोले, ‘अपने अग्रज पंडितराज की ज्ञान-विज्ञान परंपरा का संरक्षण और विकास करना, किंतु अपना चिंतन सदैव धर्मपरायण और आदर्शनिष्ठ बनाए रखना।’ विभीषण ने जिज्ञासा व्यक्त की, ‘रावण से चिंतन के स्तर पर क्या भूलें हुईं?’ भगवान करुणानिधि बोले, ‘उसने ऋषि परंपरा के व्यवस्थित चिंतन-क्रम को त्याग कर लोलुपों का अस्त-व्यस्त मार्ग अपना लिया। इसलिए वह अपने ज्ञान के ठोस लाभ समाज को नहीं दे सका। संकीर्ण स्वार्थपूर्ण चिंतन ने उसे हीन कर्मों में लगा दिया और अंततः उसकी दुर्गति कर दी। धर्म की रक्षा करने के स्थान पर उसने अनीति और अधर्म का ही पोषण किया। यही उसके पतन का कारण बना।’

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