चेतना के जागरण का उत्सव
जन्माष्टमी केवल भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व नहीं, बल्कि यह मानव चेतना के जागरण और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक भी है। इसकी जड़ें धार्मिक परंपराओं से कहीं गहरी हैं, जो मनुष्य के आत्मिक उत्थान की राह खोलता है।
श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में, मध्यरात्रि में, जब सम्पूर्ण ब्रह्मांड मौन और ध्यानस्थ होता है। यह दृश्य प्रतीकात्मक है – ‘कृष्ण’ चेतना का वह प्रकाश है जो व्यक्ति के भीतर की ‘अज्ञानता’ रूपी अंधकार को चीर कर प्रकट होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो रात्रि के समय मानव मस्तिष्क की अल्फा तरंगें सक्रिय होती हैं, जो ध्यान और आत्मनिरीक्षण के लिए सर्वोत्तम अवस्था मानी जाती है। इस समय की गई साधना, प्रार्थना या चिंतन गहरी मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा को जागृत करता है।
श्रीकृष्ण का ‘अवतरण’ केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि यह हर साधक के भीतर घटित होने वाली चेतना की क्रांति है। जब मन ‘कंस’ रूपी अहंकार, भय, लोभ, और वासनाओं से मुक्त होता है, तभी उसमें श्रीकृष्ण का जन्म संभव होता है। इस संघर्ष का मंच ‘मथुरा’ है – प्रतीक है हमारे मन का। और ‘गोकुल’ वह निर्मल स्थिति है जहां चेतना सहज, सरल और प्रेममय बन जाती है। मथुरा, गोकुल, द्वारका, कुरुक्षेत्र स्थानों का संबंध भगवान कृष्ण से सभी धर्म ग्रंथों में वर्णित है परंतु इसमें छिपे आध्यात्मिक रहस्य को जानना भी आवश्यक है। जहां श्रीकृष्ण की उपस्थिति ने अति समृद्ध, कृषि प्रधान उतर भारत की धरा को पावन किया वहीं पश्चिम भारत की द्वारका जैसे कम संपन्न, जहां कृषि न के बराबर है, को भी अपनी उपस्थिति न केवल पावन किया बल्कि उसको एक समृद्धशाली स्थान बनाया। जन्माष्टमी का उपवास और रात्रि जागरण भी महज रीति नहीं हैं। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि उपवास शरीर में कोशिकीय मरम्मत को बढ़ावा देता है और मानसिक शुद्धता लाता है। वहीं जागरण, जब ध्यान और भजन के साथ किया जाए, तो वह नींद की आवश्यकता को कम करते हुए मस्तिष्क को गहन विश्रांति देता है। यह वही अवस्था है जिसमें दिव्य ऊर्जा और जागृति का अनुभव होता है।