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Bhagwan Vishnu Katha : जब देवी लक्ष्मी ने नहीं मानी थी श्रीहरि की यह शर्त, गरीब स्त्री का लेना पड़ा रूप

जब देवी लक्ष्मी ने नहीं मानी थी श्रीहरि की यह शर्त, भगवान की आंखों से भी बहने लगे थे अश्रु
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चंडीगढ़, 28 दिसंबर (ट्रिन्यू)

Bhagwan Vishnu Katha : हिंदू धर्म में परम पूजनीय भगवान विष्णु को सृति का पालनहार कहा जाता है। वहीं, भगवान विष्णु ने धरती पर विभिन्न-विभिन्न अवतार लेकर राक्षसों से आजाद करवाया है। हालांकि एक समय ऐसा भी आया जब श्री हरि को आंखों से आंसू बहाने पड़े। दरअसल, भगवान विष्णु और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है, जिनका वर्णन ग्रंथों आदि में मिलता है। उन्हीं में से एक कथा के मुताबिक, देवी लक्ष्मी के कारण भगवान विष्णु की आंखों से अश्रु बहने लगे थे।

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पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु एक बार पृथ्वी पर भ्रमण करने जा रहे थे लेकिन तभी देवी लक्ष्मी ने भी उनके साथ जाने की हठ पकड़ ली। इसपर भगवान विष्णु ने उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहा। साथ ही उन्होंने यह शर्त भी रखी कि चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाए लेकिन वह पृथ्वी भ्रमण के दौरान वह उत्तर दिशा की ओर नहीं देखेंगी।

देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु की शर्त मान ली और उनके साथ पृथ्वी भ्रमण के लिए निकल पड़ी। मगर, फिर भ्रमण के दौरान देवी लक्ष्मी की नजर उत्तर दिशा में पड़ी, जहां हरियाली ही हरियाली थी। उसे देख देवी मोहित हो गई और बगीचे को देखने चली गई। वह बगीचे से एक फूल तोड़ भगवान के पास लाई लेकिन श्रीहरि उसे देखकर रोने लगे। भगवान के अश्रु देख उन्हें वह शर्त याद आ गई।

तब श्रीहरि ने देवी लक्ष्मी को बताया कि पूछे किसी भी वस्तु को छूना अपराध माना जाता है। इसके बाद देवी लक्ष्मी को अपनी गलती का एहसास किया और उन्होंने भगवान से माफी मांगी। तब उन्होंने कहा कि सिर्फ बगीचे का माली ही उन्हें माफी दे सकता है, जिसके लिए उन्हें माली के घर दासी बनकर रहना होगा। तब माता लक्ष्मी ने गरीब स्त्री का रूप धारण किया और माली के घर अपनी गलती का पश्चताप करने चली गईं।

माली बिना जाने कि वह देवी लक्ष्मी है उनसे कई तरह के काम करवाए। जब माली को इस बात का पता चला कि वह मां लक्ष्मी के असली रूप को देखकर रोने लगा। तब देवी लक्ष्मी ने उनसे अपनी गलती के लिए माफी मांगी और माली ने कहा कि यह सब भाग्य का खेल है। इसमें किसी का दोष नहीं है। तब देवी लक्ष्मी ने माली को जीवनभर के लिए सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिया और वैकुंठ लौट गई।

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