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विवेक से संतुलन

एकदा
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एक बार एक युवा शिष्य ने अपने गुरु से पूछा, ‘गुरुदेव, जीवन में सही निर्णय कैसे लें? भावनाएं अक्सर भटका देती हैं।’ गुरु मुस्कुराए और उसे बांसवाड़ी की ओर ले गए। वहां उन्होंने एक सूखा बांस दिखाया और कहा, ‘देखो, यह बांस अब उपयोगी नहीं है। इसे काटकर बांसुरी बनाई जाएगी। लेकिन एक बात सोचो—क्या हर बांस से बांसुरी बनती है?’ शिष्य ने कहा, ‘नहीं गुरुदेव, केवल वह बांस चुना जाता है जो सीधा, खोखला और संतुलित हो।’ गुरु बोले, ‘ठीक इसी तरह, जब तुम किसी निर्णय पर पहुंचने की स्थिति में होते हो, तो तुम्हें भीतर से खोखला, यानी पूर्वाग्रहहीन होना चाहिए। सीधा, यानी ईमानदार और संतुलित, यानी भावनाओं और तर्क के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए। तभी निर्णय शुद्ध स्वर देगा, ठीक जैसे बांसुरी में सटीक ध्वनि होती है।’ गुरु ने कहा, ‘भावनाएं महत्वपूर्ण हैं, पर यदि वे निर्णय पर हावी हो जाएं, तो वे उसे विकृत कर सकती हैं। तर्क दिशा देता है, भावना ऊर्जा और दोनों का संतुलन ही सच्चा विवेक है।'

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