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आत्मिक ऊर्जा बढ़ने से तन-मन का संतुलन

चैत्र नवरात्र और उपवास
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जब व्यक्ति उपवास करता है, तो वह इंद्रियों के नियंत्रण और मानसिक शुद्धि की दिशा में बढ़ता है। उपवास हमें अपनी इच्छाओं और वासनाओं पर नियंत्रण रखने की शिक्षा देता है। यह ध्यान और साधना में गहराई लाने में मददगार है, जिससे चेतना का स्तर ऊंचा उठता है।

नरेंद्र शर्मा

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उपवास सिर्फ आहार तक सीमित गतिविधि या प्रक्रिया नहीं है बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रणाली है, जो आत्मशुद्धि, मानसिक स्थिरता और आत्मसंयम को बढ़ावा देती है। विभिन्न धर्मों और योग परंपराओं में उपवास को आत्म-उन्नति का साधन माना गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र से नया वर्ष प्रारम्भ होता है, साथ ही ऋतु चक्र भी बदलता है, जिससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का अवसर मिलता है। इस समय प्रकृति, शरीर और चेतना में एक विशेष समानुपातिक रिश्ता होता है। इसलिए इस समय किया गया उपवास न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप से भी लाभकारी होता है। यह आत्मिक ऊर्जा को बढ़ाने और शरीर-मन को संतुलित करने का एक प्रभावी माध्यम है।

आध्यात्मिक विज्ञान

शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि की प्रक्रिया उपवास से होकर गुजरती है। इसीलिए उपवास को आत्मशुद्धि की प्रक्रिया कहा जाता है। क्योंकि इसका संबंध केवल शरीर से नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक स्तर पर से भी होता है। जब व्यक्ति उपवास करता है, तो वह इंद्रियों के नियंत्रण और मानसिक शुद्धि की दिशा में बढ़ता है। उपवास हमें अपनी इच्छाओं और वासनाओं पर नियंत्रण रखने की शिक्षा देता है। यह ध्यान और साधना में गहराई लाने में मददगार है, जिससे चेतना का स्तर ऊंचा उठता है। चैत्र के नवरात्र में हम सात्विक भोजन (फल, दूध, साबूदाना, सिंघाड़ा, कुट्टू आटा आदि) करते हैं, जिससे शरीर की ऊर्जा शुद्ध रहती, नकारात्मकता दूर होती है। इससे ध्यान और भक्ति में गहराई आती है, जो आत्मिक ऊर्जा बढाने में मददगार होती है।

शक्ति का संरक्षण

चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नियमित उपवास और जप-तप से व्यक्ति अपनी चेतना को दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है, जिससे आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे ध्यान और प्राण ऊर्जा में वृद्धि होती है। उपवास के दौरान शरीर अधिक ऊर्जा को आंतरिक रूप से आत्मिक विकास में लगाता है। यह ऊर्जा ध्यान, जप और प्राणायाम में सहायक होती है, जिससे आध्यात्मिक अनुभूति गहरी होती है। शास्त्रों के विधान से किया गया उपवास व्यक्ति को ईश्वर के निकट लाने में सहायक होता है। यह एक साधना की तरह कार्य करता है, जिससे व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा में प्रगति करता है। चैत्र नवरात्र के वासंतिक मौसम में उपवास से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। उपवास से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है, इससे शरीर विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है और चयापचय यानी मेटाबोलिज्म को संतुलित करता है, इससे शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ता है। उपवास करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है,जो हमे कई तरह की बीमारियों से बचाती है।

ध्यान की शक्ति

उपवास के दौरान सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर्स की मात्रा संतुलित होती है, जिससे मन शांत रहता है और ध्यान की शक्ति बढ़ती है। मानसिक तनाव और चिंता कम होती है, जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है। उपवास से शरीर के ऊर्जा केंद्र या ऊर्जा चक्र सक्रिय होते हैं, जिससे आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ती है। जब शरीर में भोजन सीमित होता है, तो शरीर ऊर्जा को पाचन में खर्च करने के बजाय मानसिक और आध्यात्मिक कार्यों की ओर मोड़ता है, जिससे आत्मिक ऊर्जा बढ़ती है। चैत्र नवरात्रि के समय मौसम में परिवर्तन होता है, जिससे शरीर का जैविक चक्र प्रभावित होता है। उपवास इस चक्र को संतुलित करता है और शरीर को नए मौसम के लिए तैयार करता है। इससे भी इम्यून सिस्टम मजबूत होता है, जिससे मेटाबॉलिज्म नियंत्रित रहता है।

भावनात्मक संतुलन

उपवास के दौरान मन अधिक शांत और केंद्रित होता है। नकारात्मक विचार कम होते हैं और आत्मसंयम बढ़ता है। यह व्यक्ति को भावनात्मक संतुलन में रखता है, जिससे जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है। हमारा आध्यात्मिक और नैतिक विकास होता है। उपवास से व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में अंतर समझने लगता है, जिससे मोह और भौतिक आसक्तियों से मुक्ति मिलती है। यह करुणा, दया और सेवा की भावना को प्रबल करता है, जिससे सामाजिक जीवन भी समृद्ध होता है। वैज्ञानिक रूप से, उपवास से कोशिकाओं की मरम्मत की प्रक्रिया तेज होती है, जिससे शरीर अधिक ऊर्जा प्राप्त करता है। आयुर्वेद में कहा गया है कि समय-समय पर उपवास करने से शरीर का ओज बढ़ता है, जिससे व्यक्ति अधिक ऊर्जावान और उत्साही महसूस करता है।

जीवन में सकारात्मक परिवर्तन

उपवास के दौरान ध्यान और साधना से मन अधिक केंद्रित और शांत होता है। आत्मसंयम और साधना से आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है। शरीर और मन के शुद्धीकरण से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन में सकारात्मकता आती है। इस तरह चैत्र नवरात्रि के उपवास केवल धार्मिक अनुष्ठानभर नहीं हैं, बल्कि आत्मिक ऊर्जा बढ़ाने, शरीर को शुद्ध करने और मानसिक शांति प्राप्त करने का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक साधन हैं। यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलित कर जीवन को ऊर्जावान और दिव्यता से भर देते हैं। इ.रि.सें

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