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भविष्य की कला

एकदा
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शांतिनिकेतन में एक प्रदर्शनी लगी थी, जिसमें विद्यार्थियों की बनाई चित्रकला प्रदर्शित हो रही थी। रवींद्रनाथ ठाकुर वहां आए। चित्र देखते हुए उनकी नज़र एक कोने में रखी बेहद साधारण-से चित्र पर पड़ी— जिसमें पेड़, सूरज और एक पक्षी था। उन्होंने उसे गौर से देखा और पास खड़े शिक्षक से पूछा, ‘यह किसने बनाया?’ शिक्षक ने कहा, ‘यह एक 9 साल का लड़का है, जो गांव से आया है। अभी सीख ही रहा है, चित्र साधारण है।’ गुरुदेव मुस्कुराए और बोले, ‘यह चित्र साधारण नहीं है, इसकी आंखें गहरी हैं। इसमें डर नहीं है, यही कला की पहली निशानी है।’ उन्होंने उस चित्र के नीचे अपने हाथ से लिखा—‘इस चित्र में भविष्य बोल रहा है।’ वह बालक, जिसे लोग सामान्य समझते थे, वर्षों बाद प्रसिद्ध चित्रकार बिनोद बिहारी मुखर्जी बना — शांतिनिकेतन का स्तंभ और बाद में रवींद्रनाथ के ही संग्रहालयों का सज्जाकार।

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