एंटोन चेखव जब बालक थे, तब उनको जिस किंडरगार्टन में भेजा गया वहां पर प्रकृति प्रेम का बेहद कड़ा अनुशासन था। बच्चों को सख्त हिदायत दी गई थी कि फूलों को प्यार करना चाहिए पर उनको डाली से जुदा नहीं करना चाहिए। चेखव को वहां हरेभरे वृक्ष देखकर बहुत आनंद मिला। वो अपनी कक्षा में जाकर वहां से कुछ कागज व रंग लेकर उन फूलों की हूबहू नकल उतारने लगे। बालक चेखव का यह अंदाज किंडरगार्टन की संयोजिका को बहुत प्रभावित कर गया। एक सप्ताह बाद उनकी मां से मीटिंग करते हुए उन्होंने अनुरोध किया कि बालक चेखव को साहित्य और कला की तरफ अग्रसर होने दें। और जब मां ने कारण पूछा तो जवाब मिला कि किंडरगार्टन के सब बच्चे डर से प्रकृति प्रेम दिखा रहे हैं केवल एक चेखव ने पूरे दिल से और अपने मूल स्वभाव से प्रकृति को हर दिन खूब सराहा। बीस साल बाद एंटोन चेखव एक कवि, चित्रकार व कहानीकार बने।
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