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श्रद्धाभाव से अपने पूर्वजों का स्मरण का अवसर

श्राद्ध 7 सितंबर से प्रारंभ
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भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस तक पूर्वजों (पितरों) को श्रद्धाभाव से याद करते हुए उनके निमित्त दान, तर्पण करने के दिन श्रुति-स्मृति व पुराणों में बताए गए हैं। भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के मुख्य ऋण माने गए है—देव-ऋण, ऋषि-ऋण एवं पितृ-ऋण। ‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ से बना है, पितरों के प्रति श्रद्धा भाव से जो कुछ दान अर्पित किया जाए, वह श्राद्ध है। श्राद्ध द्वारा पूर्वजों व पितृ-ऋण को उतारना आवश्यक है। वर्षभर में उनकी मृत्यु-तिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्पादि से श्राद्ध-स्मरण करने व गोग्रास देकर विप्र भोजन करवाया जाता है।

विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धाभाव से अपने पूर्वजों का मृत्यु तिथि पर श्राद्धकर्म करने से मनुष्य, ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वसु, मरुद्गण, विश्वेदेव, पितृगण, पक्षी, मनुष्य, पशु, सरीसृप, ऋषिगण, भूतगण आदि संपूर्ण जगत को तृप्त करता है। श्राद्ध में अपनी सामर्थ्य से अधिक खर्च, किसी प्रकार का प्रदर्शन करना बिल्कुल आवश्यक नहीं है। साधन, द्रव्य-धन की कमी के कारण भी श्राद्ध कर सकते है।

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पुराण के अनुसार यदि कोई श्राद्ध करने में असहाय है तो वह निश्चित तिथि पर द्विज श्रेष्ठ को प्रणाम कर एक मुट्‌ठी तिल या भक्ति-विनम्र चित्त से सात-आठ तिलों से पृथ्वी पर जलांजलि दें। इसका अभाव हो तो एक दिन का चारा लाकर प्रीति और श्रद्धापूर्वक गाय को दें। इसका भी अभाव हो तो स्नानादि कर अपने कक्षमूल को दिखाकर सूर्य आदि दिक्पालों को नमस्कार करते उच्च स्वर में कहे- मेरे पास श्राद्धकर्म के योग्य न वित्त है, न धन है और न अन्य सामग्री है, अतः में अपने पितृगण को नमस्कार करता हूं। वे वे मेरी भक्ति से ही तृप्ति लाभ करें।

श्राद्ध काल में निश्चित तिथि को श्राद्ध कर्म किसी द्विज के सह‌योग से पितरों की पूजा एवं गोदुग्ध मिश्रित गंगाजल, शहद, कुशा आदि से देव, ऋषियों का तर्पण यमादि देवताओं, धर्मराज चित्रगुप्त आदि को यव-तिल-कुशादि की पवित्री बनाकर (कांसे की थाली में शालिग्राम या पूंगीफल रखकर पूर्वजों का प्रतीकमात्र समझकर) तर्पण दें। उसके पश्चात तिथि के अनुसार (पूर्वजों) उनका नाम, गोत्र का नाम लेकर श्रद्धाभाव से तर्पण करें।

सात सितंबर को पूरे भारत में खग्रास चंद्रग्रहण

रविवार 7 एवं 8 सितंबर को रात को लगने वाला खग्रास चंद्रग्रहण संपूर्ण भारत में दृष्टिगोचर होगा। रात 8:58 पर चंद्र मालिन्य आरंभ होगा तथा उस समय पूरे भारत में चंद्रोदय हो चुका होगा। भारत में सायं 6 से 7 बजे तक चंद्रोदय हो चुका होगा, ग्रहण का स्पर्श रात 9:57 पर प्रारंभ होगा तथा खग्रास 11:01 पर प्रारंभ होगा तथा ग्रहण का मध्य‌काल 11:42, खग्रास समाप्ति 12:23 एवं ग्रहण की समाप्ति रात (8 की सुबह) 1:26 पर होगी। ग्रहण की अवधि लगभग 3:29 घंटे होगी। ग्रहण का सूतक 7 सितंबर को दोपहर 12:57 पर प्रारंभ हो जाएगा।

ग्रहण सूतक काल में स्नान, दान, जप-पाठ मंत्रादि व तीर्थस्नान, हवनादि शुभ कृत्य करने चाहिए। धार्मिक जन-मानस को ग्रहण (7 सितंबर) सूर्यास्त से पूर्व ही अपनी राशिनुसार अन्न, जल, चावल, सफेद वस्त्र, फल-फूल आदि संकल्प करके 8 की सुबह स्नानादि के बाद दान करना शुभ होगा। कांसे की कटोरी में घी भरकर अपना मुंह देख उसमें द्रव्य रूप में सिक्का डालकर दान करना चाहिए।

ग्रहण मेष वृश्चिक, धनु व कर्क, मीन के लिए शुभ-सामान्य तथा वृष, मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, मकर, कुंभ राशि को दानोपार्जन करना शुभ रहेगा। ग्रहण सूतक काल में दूध-दही, खाद्य (पक्व खाना) व तरल पदार्थ में कुशा डालकर रखना चाहिए। ग्रहण काल में धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना चाहिए।

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