महाराजा रणजीत सिंह केवल कुशल राजनीतिज्ञ ही नहीं थे, बल्कि वे सरलता और सहनशीलता के भी धनी थे। एक बार वे किसी सभा में बैठे थे कि अचानक कहीं से एक पत्थर आकर उन्हें लग गया। पता लगाने पर मालूम हुआ कि वह पत्थर एक बालक ने फेंका था। लड़के ने पत्थर बेल के वृक्ष के फल को निशाना बनाकर ऊपर फेंका था, किंतु वह फल को न छूकर महाराजा के शरीर पर लगा। महाराजा ने हुक्म दिया कि उस बच्चे को उनके सामने बुलाया जाए। सभा में मौजूद लोग आशंका करने लगे कि महाराजा रुष्ट होकर उस बालक को कड़ी सजा देंगे। परन्तु आश्चर्य यह हुआ कि महाराजा ने अपने हाथ से सोने का बाजूबंद उतारकर उस बच्चे को भेंट कर दिया। भयभीत बालक के मुरझाए चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। सभा के सदस्यों ने हैरत से कहा, ‘महाराज, आपने यह क्या किया? इस लड़के को तो दंड मिलना चाहिए था।’ महाराजा ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, ‘यदि बालक का फेंका हुआ पत्थर वृक्ष को लगता, तो उसे फल मिलता। क्या रणजीत सिंह के शरीर पर लगने से कोई फल नहीं मिलना चाहिए?’ महाराजा का यह उत्तर सुनकर सभा के सदस्य सन्न रह गए।
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