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मानवता और शिल्पकला का अनूठा संगम

रानीजी की बावड़ी

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बूंदी की रानीजी बावड़ी, राजस्थान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जो न केवल जल संरक्षण का उदाहरण है, बल्कि दया और धर्म की प्रतीक भी है। यह बावड़ी शिल्पकला और मानवता का अद्वितीय संगम है।

समाज से हम जितना कुछ लेते हैं, उसका एक प्रतिशत भी उसे नहीं देते। जब कभी आवश्यकता होती है, तो हम संकोच में भर जाते हैं। कुछ वर्ष पहले कोरोना के दौरान जिस प्रकार से समाज को देने का अवसर मिला, तो लोगों ने जी भरकर दूसरों के लिए जीने का प्रयास किया। यह उदाहरण हमें राजा-महाराजाओं के काल में भी मिलता है, जब उन्होंने दया और धर्म की नींव पर काम किए थे।

हाड़ौती क्षेत्र की बावड़ियां

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हाड़ौती, विशेष रूप से राजस्थान के कोटा-बूंदी क्षेत्र के राजाओं और उनकी रानियों द्वारा किए गए मानवता के कार्यों के लिए प्रसिद्ध है। जब अकाल आया था, तो इन शासकों ने सनातनी परंपरा को बनाए रखने और मानवीयता के दीए को जलाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। बूंदी क्षेत्र में, जहां राजपूत राजा अपनी आन-बान-शान के साथ ही दया और धर्म के लिए भी प्रसिद्ध थे, यहां पर सबसे अधिक बावड़ियां पाई जाती हैं। माना जाता है कि यहां कम से कम तीन दर्जन बावड़ियां हैं, जिनमें से कई आज भी प्राचीनता को समेटे खड़ी हैं।

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रानीजी की बावड़ी

बूंदी के शहर के बीचोंबीच स्थित रानीजी की बावड़ी, राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी बावड़ी है। इसकी खूबसूरती विश्व की अधिकांश बावड़ियों से कहीं अधिक है। राजस्थान में दो बावड़ियां सबसे ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करती हैं—एक है दौसा की चांद बावड़ी, जिसे आभानेरी के नाम से भी जाना जाता है और दूसरी है रानीजी की बावड़ी। यह बावड़ी, बूंदी में किले के बाद सबसे अधिक पर्यटकों को आकर्षित करती है। कहा जाता है कि यह बावड़ी दया और धर्म की नींव पर खड़ी है, और इसके भीतर सनातन धर्म की पताका इस तरह से फहराई है कि जो भी इसे देखता है, वह इसका मुरीद हो जाता है।

निर्माण और उद्देश्य

बावड़ियों का निर्माण मुख्य रूप से अकाल के दौरान पीने के पानी की समस्या को हल करने के लिए किया जाता था, और इसके लिए राजा-महाराजा दिल खोलकर धन देते थे। रानीजी की बावड़ी भी इसी उद्देश्य से बनवाई गई थी। स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस बावड़ी का निर्माण यहां के शासक राव राजा अनिरुद्ध की पत्नी रानी नाथावती सोलंकी ने करवाया था। इसका निर्माण सन‍् 1699 में आरंभ हुआ था और यह महाराव राजा बुद्ध सिंह के समय में पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ। इस बावड़ी की ऐतिहासिकता लगभग सवा तीन सौ वर्ष पुरानी है।

वास्तुकला

यह बावड़ी तीन मंजिला है और इसकी गहराई लगभग 151 फीट है। तल तक पहुंचने के लिए सौ से अधिक सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं। पूरी बावड़ी नक्काशीदार है और जिन खंभों पर यह टिकी है, उनकी खूबसूरती कई महलों को भी पीछे छोड़ देती है। मुख्य द्वार से जैसे ही नीचे उतरते हैं, हमारा सामना एक तोरण द्वार से होता है, जिसके शिखर पर हाथी खड़े होकर स्वागत करते हैं। चार स्तंभों से घिरा द्वार, तीन तलों तक पहुंचने का मार्ग है और यह राजपूती कला का अद्वितीय उदाहरण है।

शिव-परिवार की पूजा और शिल्पकला

चूंकि यहां के राजा शिव-परिवार के भक्त थे, इसलिए इस बावड़ी में हाथियों की बारंबारता देखने को मिलती है। भारतीय शिल्पकला का बेहतरीन उदाहरण यहां देखा जा सकता है और यूरोपीय तथा अंग्रेजी कला की कोई छाया इस पर नहीं पड़ी है। बावड़ी के विभिन्न तलों पर भगवान विष्णु के सभी अवतार, गणेश जी, सरस्वती जी और गजेन्द्र मोक्ष की सजीव झांकी भी देखी जा सकती है। खंभों पर उत्कीर्ण हाथियों के साथ अन्य कलाकृतियां इतनी सुंदरता से बनाई गई हैं कि वे विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा किए गए हमलों के बावजूद आज भी अपनी पूरी महिमा के साथ मौजूद हैं।

सांस्कृतिक-ऐतिहासिक धरोहर

रानीजी की बावड़ी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में अपनी कहानी खुद ही सुनाती है। यह एक ऐसी जगह मानी जाती है जहां किसी रानी की आत्मा की आवाज़ कभी-कभी सुनाई देती है। कहा जाता है कि रानी नाथावती ने इसे इस सोच के साथ बनवाया था कि जब कभी अकाल आए, तो इसके पानी से जनता की प्यास बुझाई जा सके।

सती माता का चबूतरा

बूंदी की बावड़ियों में एक और विशेषता यह है कि यहां सती चबूतरे भी देखने को मिलते हैं, जो अपनी धार्मिकता और कलात्मक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध हैं। इन पर आज भी लोग अपनी श्रद्धा और आस्था प्रकट करने आते हैं।

आने-ठहरने की व्यवस्था

बूंदी आने के लिए पहले कोटा पहुंचना होगा, जो रेलवे, बस या हवाई मार्ग से उपलब्ध है। कोटा से आप टैक्सी या बस द्वारा बूंदी जा सकते हैं। बावड़ी का प्रवेश रविवार को बंद रहता है और सामान्यत: प्रात: 9 से 5 बजे तक ही दर्शकों के लिए खुली रहती है। ठहरने के लिए, बेहतर होगा कि आप कोटा में रुकें। यहां बूंदी में होटल्स की संख्या सीमित है। कोटा से बूंदी की दूरी लगभग एक से डेढ़ घंटे की है और साधन हमेशा उपलब्ध रहते हैं। चित्र लेखक

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