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अखंड भक्ति और सात्विक जीवन का प्रतीक

योगिनी एकादशी

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योगिनी एकादशी सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे प्रत्येक वर्ष आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। यह व्रत पापों का नाश कर भक्त को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा इस दिन व्रती पर होती है, जिससे जीवन में समृद्धि और शांति आती है।

चेतनादित्य आलोक

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सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। इसीलिए इसे सभी व्रतों के राजा की संज्ञा भी दी गई है। एकादशी का यह व्रत प्रत्येक महीने आने वाली दो एकादशी तिथियों को किया जाता है- एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष में। इस प्रकार, पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशी तिथियां आती हैं, लेकिन अधिकमास अथवा दोमास लगने पर वर्ष में कुल 26 एकादशी तिथियों का संयोग बनता है। सच कहा जाए तो इन सभी एकादशियों में भी योगिनी एकादशी का व्रत विशेष महत्व वाला होता है।

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तिथि और मुहूर्त

योगिनी एकादशी का व्रत प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 21 जून की सुबह 07 बजकर 18 मिनट पर शुरू हो रही है, जबकि इसका समापन 22 जून को सुबह 04 बजकर 27 मिनट पर होगा। ऐसे में, उदया तिथि की मान्यता के अनुसार इस वर्ष योगिनी एकादशी का व्रत 21 जून (शनिवार) को रखा जाएगा।

योगिनी एकादशी की महिमा

ऐसी मान्यता है कि तीनों लोकों में प्रसिद्ध इस व्रत को करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य का फल मिलता है। भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित यह व्रत अन्य सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। इस व्रत को समर्पण भाव से करने एवं व्रत की कथा सुनने से पृथ्वी लोक में भोगों की और परलोक में मुक्ति की प्राप्ति होती है। यही नहीं, इस व्रत के प्रभाव से भक्त को भगवान श्रीहरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही भक्त के जीवन में धन-धान्य, यश एवं वैभव की वृद्धि और अंत में मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। योगिनी एकादशी की महिमा ऐसी है कि शास्त्रों में इसे पापनाशिनी एवं शापनाशिनी एकादशी के रूप में भी व्याख्यायित किया गया है।

शापनाशिनी एकादशी

ज्योतिष विद्या के मानक ग्रंथ ‘बृहत पराशर होरा शास्त्र’ में 14 प्रकार के शापों का उल्लेख किया गया है। पितु, प्रेत, ब्राह्मण, मातृ, पत्नी, सहोदर और सर्व श्राप आदि को भृगु सूत्र में महर्षि भृगु ने भी अनुमोदित किया है। बता दें कि इन शापों के कारण व्यक्ति की उन्नति नहीं होती। उसका पुरुषार्थ व्यर्थ साबित होता है। साथ ही, उसकी संतान भी जीवित नहीं रह पाती है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, इन शापों से पीड़ित जातकों के लिए योगिनी एकादशी का व्रत वरदान की तरह होता है। इस दिन समर्पण भाव से व्रत करने और कथा का श्रवण करने से सभी प्रकार के शापों से मुक्ति मिलती है।

पापनाशिनी एकादशी

योगिनी एकादशी को पापों से मुक्ति दिलाने वाली एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, योगिनी एकादशी के शुभ प्रभाव से भक्त के न केवल पूर्व के सभी पापों का नाश हो जाता है, बल्कि भविष्य में भी उनका जीवन पवित्र और सुखद बना रहता है। यह उन लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है, जो भौतिकवाद के प्रति शीघ्र आकर्षित होते हैं तथा जिन्हें आध्यात्मिकता के मार्ग की ओर अग्रसर होने की आवश्यकता प्रतीत होती है। दरअसल, यह व्रत भौतिकता के चंगुल से निकालकर भक्त को आध्यात्मिकता के मार्ग पर अग्रसर करने का कार्य करता है। इस व्रत के करने से शरीर के साथ-साथ मन की भी शुद्धि होती है और मनुष्य के लिए मुक्ति का द्वार खुलता है। अर्थात इस व्रत के करने वाले भक्तों के लिए मुक्ति की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। ऐसी मान्यता है कि योगिनी एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से बड़े से बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं तथा व्यक्ति का मन और आत्मा शांत, स्निग्ध और हल्की-फुल्की हो जाती है।

व्रत के नियम

महापुण्य फलदाई योगिनी एकादशी का व्रत दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू हो जाता है। व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भूमि-शयन करना चाहिए। प्रातः स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लने के बाद घट-स्थापना कर उस पर भगवान श्रीहरि विष्णु की मूर्ति रखकर पूजा करनी चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक व्रत का अनुष्ठान करने से भक्तों पर भगवान श्रीहरि विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा होती है। इसके परिणामस्वरूप, जीवन में धन-धान्य, सुख-समृद्धि, यश-वैभव आदि का संचार होता है और अंत में व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करनी चाहिए। साथ ही, रात्रि जागरण करते हुए सात्विक जीवन जीना चाहिए।

तुलसी से जुड़े उपाय

मान्यता है कि योगिनी एकादशी के शुभ अवसर पर इन चमत्कारी उपायों के करने से व्यक्ति का दुर्भाग्य नष्ट होता है और घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है :-

तुलसी पूजन

योगिनी एकादशी के दिन सुबह स्नान के बाद भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ-साथ तुलसी माता की भी विधिवत पूजा करनी चाहिए। इस अवसर पर, तुलसी माता को जल, धूप-दीप आदि अर्पित कर सात परिक्रमा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।

तुलसी दल

इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के भोग में तुलसी-दल अवश्य डालना चाहिए। ऐसा करने से भगवान खुश होकर भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

तुलसी माला

इस दिन तुलसी की माला धारण करना या पूजा के समय तुलसी की माला से जाप करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और मन शांत रहता है।

पौधे लगाएं

इस दिन घर पर तुलसी का नया पौधा लगाना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

तुलसी विवाह

योगिनी एकादशी के दिन शाम के समय तुलसी विवाह का आयोजन करने से घर में खुशहाली आती है।

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