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हरि और हर के बीच श्रद्धा का प्रतीक उत्सव

उज्जैन में हरिहर मिलन

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उज्जैन का हरिहर मिलन उत्सव एक अद्भुत धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा है, जो वैष्णव और शैव सम्प्रदायों के सौहार्दपूर्ण मिलन का प्रतीक है। बैकुंठ चतुर्दशी की रात, भगवान महाकाल और गोपालकृष्ण का पारंपरिक आदान-प्रदान, श्रद्धा, विश्वास और परंपराओं के संगम को दर्शाता है, जो श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर देता है।

पुुरातन धार्मिक-सांस्कृतिक नगरी उज्जयिनी (उज्जैन) की उत्सव परम्परा में हरि-हर मिलन की धार्मिक-सांस्कृतिक परम्परा अपना विशेष महत्व रखती है। यह उत्सव वैष्णव व शैव सम्प्रदाय के परस्पर सौहार्दपूर्ण भावना की परिचायक बनता है।

पारंपरिक श्रद्धा व विश्वास

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प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी व चतुर्दशी अर्थात‍् बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि सम्पन्न होने वाली यह परम्परा श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर व गोपाल मंदिर में पारंपरिक श्रद्धा व विश्वास के अनुसार मनाई जाती है।

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महाकाल की सवारी

पारंपरिक रूप से, बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि में भगवान महाकाल की सवारी गाजे-बाजे के साथ श्री गोपाल मंदिर पहुंचती है। वहां भगवान महाकाल का स्वागत किया जाता है और पूजा-अर्चना के बाद भगवान महाकाल की तरफ से गोपालकृष्ण भगवान को बिल्व पत्र अर्पित किए जाते हैं।

पुजारियों के बीच संवाद

यहां दोनों मंदिर के पुजारियों के बीच रोचक सौजन्य व शिष्टाचार संवाद होता है, जो इस उत्सव की सांस्कृतिक विशेषता को दर्शाता है।

तुलसी दल अर्पित

रात्रि में भगवान महाकाल की सवारी पुनः मंदिर लौटने के बाद श्री गोपाल मंदिर के पुजारी महाकाल मंदिर जाते हैं, जहां गोपालकृष्ण भगवान की तरफ से भगवान महाकाल को तुलसी दल अर्पित किए जाते हैं।

टूटती हैं मान्यताएं

इस उत्सव परम्परा में एक विशेष बात यह है कि सामान्यतः भगवान शिव को तुलसी अर्पित नहीं की जाती और भगवान कृष्ण को बिल्व पत्र अर्पित नहीं किए जाते, किंतु इस परम्परा में यह मान्यता टूटती है। यह दृश्य दर्शनार्थियों व श्रद्धालुओं को प्रफुल्लित और भाव विभोर कर देता है।

वैष्णव व शैव सम्प्रदाय का समन्वय

हरिहर मिलन की परम्परा वैष्णव और शैव सम्प्रदाय के परस्पर समन्वय और सौहार्द को दर्शाती है, और यह यह संकेत देती है कि देवोत्तर एकादशी से लेकर देवोत्थान ग्यारस तक का समय शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को सौंपा जाता है और फिर चतुर्दशी को भगवान शिव, भगवान हरि को यह बागडोर सौंपते हैं।

पुरातन परम्परा

पुरातन परम्परा में रात्रि के समय भगवान महाकाल की सवारी गोपाल मंदिर से लौटने के बाद गोपालकृष्ण की सवारी महाकाल मंदिर जाती थी, लेकिन अब यह व्यवस्था बदलकर महाकाल मंदिर के समीप स्थित गणेश मंदिर से चतुर्भुज भगवान की सवारी लेकर यह परम्परा निर्वहन की जाती है। वर्तमान में यह व्यवस्था बदलकर केवल महाकाल की सवारी ही गोपाल मंदिर जाती है।

दीपावली-सा वातावरण

हरिहर मिलन की इस रात्रि में महाकालेश्वर मंदिर से गोपाल मंदिर तक मार्ग की सजावट, रोशनी और पटाखों की गूंज से दीपावली जैसा वातावरण बन जाता है। इस अद्भुत उत्सव में आसमान महाकाल व गोपालकृष्ण भगवान की जयकारों से गूंज उठता है।

अक्षुण्ण सांस्कृतिक परंपरा

हरिहर मिलन की यह परम्परा अद्भुत और अविस्मरणीय होती है। हमें चाहिए कि दोनों मंदिरों से जुड़े पुजारियों, भक्तों, श्रद्धालुओं और प्रशासन के प्रयासों से इस प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा को मूल स्वरूप में लाकर इसे अक्षुण्ण बनाए रखा जाए।

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