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अध्यात्म, साधना संग पर्यावरण के प्रति संकल्प का पर्व

पर्युषण पर्व 6 सितंबर तक
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पर्युषण पर्व जैन धर्म का एक अत्यंत पवित्र और आत्मिक जागरण का समय है, जो आत्मशुद्धि, संयम, तप और क्षमा की भावना को जागृत करता है। यह पर्व न केवल धार्मिक साधना का अवसर है, बल्कि सामाजिक, पर्यावरणीय और नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूकता का भी प्रेरक माध्यम है।

पर्युषण पर्व आत्मा की पुकार, संयम की साधना और अहिंसा की ज्योति प्रज्वलित करने वाला पवित्र अवसर है। दिगंबर जैन परंपरा का यह उत्सव मन, वचन,कर्म की शुद्धि का संकल्प जगाता है। केवल धार्मिक अनुष्ठान से आगे बढ़कर जीवन को करुणा और सत्य के मार्ग पर ले जाने का प्रेरणास्रोत है। गत 28 अगस्त से शुरू हुआ व आगामी 6 सितंबर तक चलने वाला यह पर्व हमें हमारे कर्मों का हिसाब करने और जीवन को संयम की राह पर ढालने का अवसर प्रदान करता है। ताकि हम सार्थक जीवन की ओर कदम बढ़ाएं।

पर्युषण का मर्म है आत्मशुद्धि। इसे दशलक्षण पर्व के रूप में जाना जाता है, जो दस पवित्र धर्मों—उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य— पालन का मार्ग प्रशस्त करता है। ये दस धर्म जीवन को सकारात्मकता और संतुलन की ओर ले जाते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तम क्षमा हमें क्रोध और वैर को छोड़कर दूसरों के प्रति करुणा अपनाने की प्रेरणा देती है, जबकि उत्तम संयम इंद्रियों पर नियंत्रण और आत्मानुशासन का पाठ पढ़ाता है।

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जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत का विशेष महत्व है। प्रत्येक कर्म आत्मा पर एक आवरण डालता है, और पर्युषण वह पवित्र समय है, जब अनुयायी अपने कर्मों का लेखा-जोखा करते हैं और इस आवरण को हटाने का संकल्प लेते हैं। पर्युषण हमें स्मरण कराता है कि जीवन का उद्देश्य आत्मा को बंधनों से मुक्त करना और एक बेहतर, संयमित और करुणामय इंसान बनना है।

पर्युषण पर्व का सार है तप, संयम और आत्मशुद्धि। दिगंबर जैन परंपरा में यह पर्व अनुयायियों के लिए एक पवित्र साधना का अवसर है, जहां वे कठोर उपवास और तपस्याओं के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा को संयमित करते हैं। कुछ अनुयायी पूर्ण उपवास करते हैं, कई दिनों तक केवल जल ग्रहण कर आत्मिक शक्ति का परिचय देते हैं, तो कुछ एकासना जैसे आंशिक उपवास अपनाते हैं। ये तपस्याएं केवल शारीरिक अनुशासन नहीं, बल्कि इच्छाओं पर विजय और सांसारिक मोह से मुक्ति का मार्ग हैं। उपवास के माध्यम से व्यक्ति अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करता है और आत्मिक शांति की ओर बढ़ता है, यह सिखाते हुए कि सच्चा सुख बाहरी वैभव में नहीं, बल्कि आत्मा की निर्मलता और शुद्धता में निहित है। इस दौरान ध्यान, स्वाध्याय और जिनवाणी के पाठ का विशेष महत्व है। अनुयायी तत्त्वार्थ सूत्र जैसे ग्रंथों का अध्ययन करते हैं।

पर्युषण का प्रेरणादायी पहलू है क्षमापना। पर्व के समापन पर, लोग ‘उत्तम क्षमा’ कहकर एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं, जो जैन धर्म की अहिंसा और करुणा की भावना का जीवंत प्रतीक है। यह क्रोध, ईर्ष्या या वैर को त्यागकर प्रेम और शांति के मार्ग को अपनाने का अवसर है। क्षमापना गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो दूसरों की भूलों को माफ करने और अपनी गलतियों के लिए प्रायश्चित करने की प्रेरणा देती है। यह प्रथा न केवल व्यक्तिगत संबंधों को गहराई और मजबूती प्रदान करती है, बल्कि सामाजिक एकता और समरसता को भी पोषित करती है।

पर्युषण पर्व धार्मिक अनुष्ठानों का एक ऐसा पवित्र मंच है, जो आत्मा को सत्य और संयम के पथ पर ले जाता है। दिगंबर जैन परंपरा में अनुयायी इस दौरान जिनालयों में जाकर तीर्थंकरों की पूजा-अर्चना करते हैं, जिनवाणी का श्रवण करते हैं और साधु-साध्वियों के प्रेरक प्रवचनों से जीवन की सही दिशा पाते हैं। ये प्रवचन अहिंसा, सत्य और संयम जैसे मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देते हैं, वहीं नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान भी करते हैं।

पर्युषण का एक और गहन आयाम है इसका पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण। जैन धर्म में अहिंसा केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं, बल्कि यह सभी जीवों और प्रकृति के प्रति करुणा का संदेश देता है। इस पर्व के दौरान अनुयायी हिंसक गतिविधियों से पूर्णतः विरत रहते हैं, जिससे जीवन में शुद्धता और संवेदनशीलता का संचार होता है। कई अनुयायी पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय कदम उठाते हैं, जैसे वृक्षारोपण, जल संरक्षण और स्वच्छता अभियान। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमारा जीवन प्रकृति और सभी जीवों के साथ सामंजस्य में होना चाहिए। यह वह अवसर है, जब छोटे-छोटे बदलावों के जरिये हम पर्यावरण और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाने का संकल्प ले सकते हैं।

दान और परोपकार पर्युषण का एक और अनमोल रत्न हैं। इस दौरान अनुयायी अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन, भोजन, वस्त्र या ज्ञान का दान करते हैं, जो न केवल जरूरतमंदों की सहायता करता है, बल्कि दानकर्ता के मन में त्याग और वैराग्य की भावना को जागृत करता है। दिगंबर जैन परंपरा में दान को सादगी और निस्वार्थ भाव के साथ करने पर बल दिया जाता है, ताकि यह कर्म बंधन का कारण न बने। यह प्रथा आत्मा की शुद्धि का एक शक्तिशाली साधन है। पर्युषण पर्व हमें न केवल आत्मिक उत्थान की ओर ले जाता है, बल्कि समाज और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी को भी प्रज्वलित करता है।

पर्युषण पर्व का प्रभाव केवल अनुयायियों तक सीमित नहीं, बल्कि यह समाज में सकारात्मक परिवर्तन का एक शक्तिशाली स्रोत है। यह पवित्र समय हमें अपनी जीवनशैली पर गहन चिंतन करने, कर्मों को शुद्ध करने और आत्मा को प्रबुद्ध करने का अनमोल अवसर प्रदान करता है। दिगंबर जैन परंपरा में पर्युषण आत्मा को जागृत करने और जीवन को एक नई, अर्थपूर्ण दिशा देने का पवित्र उत्सव है।

यह पर्व धार्मिक अनुष्ठानों से कहीं बढ़कर है; यह सामाजिक और पर्यावरणीय जागरूकता का भी प्रतीक है। यह हमें सत्य, अहिंसा और संयम के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है, जो न केवल व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देते हैं, बल्कि समाज में समरसता और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता के गुणों को भी पोषित करते हैं। पर्युषण एक ऐसी प्रेरणादायी यात्रा है, जो हमें आत्मिक शुद्धि, सामाजिक एकता और पर्यावरणीय संतुलन के मार्ग पर ले जाती है, जिससे हम एक बेहतर, अधिक मानवीय और संवेदनशील विश्व के निर्माण में अपना योगदान दे सकें।

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