विवाह पंचमी भारतीय संस्कृति का एक पावन पर्व है, जो भगवान श्रीराम और माता सीता के दिव्य विवाह की स्मृति में मनाया जाता है। यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि आदर्श दांपत्य, मर्यादा, प्रेम और कर्तव्य के संतुलन का संदेश देने वाला शुभ अवसर है।
भारतीय संस्कृति में जितने पर्व व त्योहार हैं, उन सबके पीछे कोई न कोई पौराणिक, आध्यात्मिक कहानी मौजूद है, जो हमें भाव-विभोर कर देती है। विवाह पंचमी भी ऐसी ही शुभ और पवित्र तिथि है, जिसे भगवान राम और माता सीता के दिव्य विवाह की स्मृति मंे मनाया जाता है। यह दिन केवल एक पौराणिक कथा की उत्सव स्मृति नहीं है बल्कि भारतीय समाज के आदर्श विवाह संस्कार, मर्यादा, प्रेम और कर्तव्य के अद्भुत संतुलन का प्रतीक है।
धार्मिक और पौराणिक महत्व
विवाह पंचमी का धार्मिक महत्व अगर पौराणिक ग्रंथों से मानें तो यह मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सम्पन्न हुए मिथिला के राजा जनक की पुत्री सीता और अयोध्या के राजा दशरथ के सुपुत्र राजकुमार राम के विवाह की तिथि है। इसे विवाह पंचमी के रूप में इसलिए जाना जाता है, क्योंकि यह तिथि भारतीय वैवाहिक जीवन के लिए एक आदर्श और प्रेरक तिथि मानी जाती है।
धर्म और मर्यादा का संगम
वास्तव मंे भगवान राम और माता सीता का मिलन केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि धर्म और मर्यादा का मिलन है। राम जहां आदर्श पुरुष और आदर्श पुत्र के रूप में पूजे जाते हैं, वहीं माता सीता त्याग, धैर्य और नारी-संस्कार की प्रतिमूर्ति हैं। विवाह पंचमी हमें यह स्मरण कराती है कि विवाह केवल सामाजिक अनुबंध ही नहीं, बल्कि दो लोगों द्वारा किया जाने वाला एक दिव्य व्रत है, जिसमें प्रेम के साथ जिम्मेदारी, सम्मान और संयम का भाव निहित है।
तिथि और मुहूर्त
इस साल विवाह पंचमी 25 नवंबर, मंगलवार के दिन पड़ रही है, लेकिन कुछ लोगों के मुताबिक यह 26 नवंबर, बुधवार को मनायी जायेगी। इस दिन मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पड़ती है, जिसमें प्रातः सूर्योदय से लेकर मध्याह्न तक विवाह पंचमी के पूजन और उत्सव का मुहूर्त रहेगा। यह दिन विशेष रूप से विवाह योग्य कन्याओं और कुमारों के लिए मंगलकारी माना जाता है।
नेपाल में विशेष उत्सव
विवाह पंचमी का उत्सव न सिर्फ भारत में, बल्कि इसका सबसे भव्य आयोजन पड़ोसी देश नेपाल में होता है, जहां जनकपुर धाम स्थित है। नेपाल में प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की पंचमी को जनकपुर धाम में ही राम-सीता का विवाहोत्सव सम्पन्न हुआ था। इसलिए इस दिन जनकपुर की गलियां फूलों से सजायी जाती हैं, मंदिरों में घंटियां बजती हैं और पूरे शहर में सौभाग्य यात्राएं निकलती हैं। पूरे वातावरण में ‘जय सिया राम’ के उद्घोष गूंजते रहते हैं।
भारत में उत्साह
भारत में भी इस दिन अयोध्या, वाराणसी, सीतामढ़ी और अन्य वैष्णव मंदिरों में यह पर्व भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भक्तजन प्रातः स्नान करके राम-सीता का स्मरण और पूजन करते हैं। घरों में दीप जलाये जाते हैं तथा भजन, कीर्तन और विवाहोत्सव के दृश्य मंचित किये जाते हैं। कई स्थानों पर सीता-राम विवाह का सांकेतिक नाट्य मंचन होता है, जिसमें बच्चे या कलाकार दूल्हा-दुल्हन के वेश में भगवान राम और माता सीता की भूमिका निभाते हैं।
पारंपरिक विधान
इस दिन व्रत और पूजन करने वाले लोग सुबह उठकर स्नान करते हैं और फिर रामचरितमानस के बालकांड में वर्णित राम-सीता विवाह प्रसंग का सस्वर पाठ करते हैं, विशेषकर वह प्रसंग जिसमें धनुष, यज्ञ और विवाह का वर्णन है। इसके बाद कलश, दीपक, फूल, फल और तुलसी दल से श्रीराम और सीता का पूजन सम्पन्न होता है। पूजा के अंत में प्रसाद स्वरूप फूल, चावल और ताजे फलों का वितरण किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन सीता–राम का पूजन वैवाहिक जीवन में स्थिरता, सौहार्द और सुख-शांति का आशीर्वाद देता है तथा अविवाहित लोगों को शुभ विवाह के योग का वरदान मिलता है।
भारतीय संस्कृति की आत्मा
वास्तव में विवाह पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा का उत्सव है। यह दिन हमें बताता है कि रिश्तों की पवित्रता तभी बनी रहती है, जब उनमें विश्वास, आदर और संयम का भाव हो। जब भी मानव समाज इन मूल्यों से भटकता है, यह पंचमी हमें राम और सीता के आदर्श जीवन की ओर लौटने की प्रेरणा देती है। विद्वानों का मानना है कि विवाह पंचमी के दिन सूर्योदय के समय दीप जलाकर यह प्रार्थना करनी चाहिए— ‘हे सीता-राम, हमारे घरों में भी वही प्रेम, वही मर्यादा और वही स्थिरता बनी रहे, जो आपके दिव्य मिलन में प्रकट होती है।’ इ.रि.सें.

