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मातृत्व, भक्ति और विश्वास का दिव्य उत्सव

यशोदा जयंती 18 फरवरी
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यशोदा मंदिर, इंदौर
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यशोदा जयंती भगवान श्रीकृष्ण की माता यशोदा के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व मातृत्व, भक्ति और विश्वास के प्रतीक के रूप में सम्पूर्ण भारत में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति और जीवन में पुण्य की वृद्धि होती है।

चेतनादित्य आलोक

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यशोदा जयंती भगवान श्रीकृष्ण की माता यशोदा के जन्मदिन के रूप में प्रति वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। हालांकि, भगवान श्रीकृष्ण को जन्म तो माता देवकी ने दिया था, लेकिन उनका लालन-पालन करने का सौभाग्य एवं मातृत्व का सुख यशोदा रानी को ही मिल पाया था। गौरतलब है कि यशोदा जयंती का पर्व संपूर्ण भारत में पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाया जाता है। वैसे देखा जाए तो उत्तर भारत में इस पर्व की धूम अधिक होती है। इस वर्ष यह पर्व 18 फरवरी यानी मंगलवार को देश भर में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।

पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पिछले जन्म में माता यशोदा ‘धरा’ और नंद बाबा ‘वसुश्रेष्ठ द्रोण’ थे। दंपति द्वारा घोर तपस्या करने के उपरांत जब पद्मयोनि ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए, तब वसुश्रेष्ठ द्रोण ने उनसे प्रार्थना की कि हे देव! पृथ्वी पर जन्म लेने पर भगवान श्रीकृष्ण में हमारी अविचल भक्ति हो। उस समय द्रोणपत्नी धरा भी पास ही खड़ी थीं, जिन्होंने मुख से तो कुछ नहीं कहा, पर उनके शरीर का रोम-रोम, उनका अणु-अणु द्रोण की बातों से सहमति प्रकट कर रहा था। तात्पर्य यह कि वसुश्रेष्ठ द्रोण और धरा दोनों ने पूर्वजन्म में पद्मयोनि ब्रह्मा जी से भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति की मांग की थी, जिसके उपरांत ब्रह्मा जी ने उनकी विनती स्वीकार करते हुए ‘तथास्तु’ कहा था। उसी वरदान के प्रभाव से ब्रजमंडल में सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला के गर्भ से देवी धरा का जन्म फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा के रूप में हुआ था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माता यशोदा के माता-पिता ने उनका विवाह ब्रज के राजा नंद बाबा से कर दिया था। बाद में भगवान श्रीकृष्ण इन्हीं नंद बाबा और माता यशोदा के पुत्र बने।

पूर्व जन्म की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार पूर्व जन्म में माता यशोदा ने भगवान श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। तत्पश्चात माता यशोदा ने भगवान से कहा, ‘मेरी तपस्या तभी पूर्ण होगी, जब आप मुझे पुत्र के रूप में प्राप्त होंगे।’ तब भगवान ने प्रसन्न होकर माता यशोदा को बताया, ‘मैं वासुदेव और माता देवकी के घर जन्म लूंगा, लेकिन मातृत्व का सुख आपको ही प्राप्त होगा।’ बता दें कि पौराणिक ग्रंथों में माता यशोदा को नंद बाबा की पत्नी और ‘नन्दरानी’ कहा गया है।

यशोदा का व्यक्तित्व

माता यशोदा वात्साल्य की मूर्तिमयी देवी थीं। सामान्यतः माताएं तो कोमल हृदय की होती ही हैं, किंतु माता यशोदा के विलक्षण व्यक्तित्व की तुलना जगत की किसी दूसरी माता से नहीं की जा सकती। उनका हृदय त्याग, स्नेह, दया और करुणा से भरा हुआ था। अपने नाम के अनुरूप ही वह सदा दूसरों को श्रेय और यश प्रदान करती थीं।

श्रीकृष्ण का जन्म

गौरतलब है कि नंद बाबा और माता यशोदा को कोई संतान न होती थी, लेकिन वृद्धावस्था में पहुंचकर पूर्वजन्म में भगवान श्रीहरि विष्णु द्वारा उनको दिया वरदान फलीभूत हो गया और भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं उनका पुत्र बनकर उन्हें वात्साल्य सुख का अनुपम सौभाग्य प्रदान किया। माता यशोदा से प्रेरणा लेते हुए आज की माताओं को भी उनके दिव्य गुण आत्मसात‍् करने चाहिए।

जयंती का महत्व

यशोदा जयंती के दिन माता यशोदा की गोद में विराजमान श्रीकृष्ण के बाल रूप और माता यशोदा की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन माता यशोदा और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यदि इस दिन कोई स्त्री निश्छल मन से पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ माता यशोदा एवं भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत‍् पूजा-आराधना करती है, उसे उत्तम संतान की प्राप्ति होती ही है।

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