हरितालिका तीज पर महिलाएं मिट्टी से शिव परिवार बनाकर उसकी पूजा करती हैं। इस कामना के साथ कि उनका दाम्पत्य जीवन भी शिव-गौरी की तरह आपसी स्नेह से सराबोर रहे। परिवार में अपनापन कायम रहे।
समझ और स्नेह का मेल लिए सामुदायिक जुड़ाव को पोसने वाले व्रत-त्योहार आज और प्रासंगिक हो चले हैं। आपाधापी भरी आज की जिंदगी में परम्परा और प्रेम को सहेजने वाले उत्सव रिश्तों में अपनेपन से सींचने के सुंदर अवसर बन गए हैं। हरतालिका तीज का पर्व भी सौभाग्य की चाह और स्नेह के धागों के सदा गुंथे रहने की कामना लिए है। पूजन-अर्चन और मेलमिलाप का यह लोकपर्व विवाहित महिलाओं के लिए जीवन भर के साथ और स्नेह के बने रहने की कामना लिए है। वहीं बेटियों के लिए स्नेहमयी वैवाहिक ज़िन्दगी का वर मांगने का उल्लास भरा उत्सव है। शिव-गौरी की उपासना का यह पर्व हर तरह से दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने की सोच से ही जुड़ा है।
साथ-स्नेह का सम्मान
वैवाहिक जीवन में एक-दूसरे से मिलने वाला सम्मान और स्नेह ही जीवन को संबल देता है। हर मुश्किल में ज़िन्दगी की राह आसान कर देता है। इसी अनमोल साथ और संबल को समर्पित शिव-गौरी की उपासना के इस पर्व पर विवाहित स्त्रियां निर्जला व्रत रखकर सुखद दाम्पत्य जीवन की कामना करती है। अटूट वैवाहिक जीवन की चाह लिए इस प्यार भरे साथ को जीने और एक-दूसरे के साथ जिंदादिल बने रहने के लिए की गई दुआएं इस पर्व का अहम हिस्सा हैं। ऐसे परम्परागत रीत-रिवाज पति-पत्नी के रिश्तों को और मजबूती ही देते हैं। कई बार नाजुक दौर से गुजर रहे रिश्तों को भी इस भावनात्मक जुड़ाव से सही दिशा मिलती है।
पारिवारिक भाव
हरतालिका तीज के पर्व में न केवल पति की कुशल कामना बल्कि अपनों की खुशियां भी मांगी जाती हैं। यह त्योहार जीवन में अपनों की अहमियत को भी रेखांकित करता है। यूं भी स्त्रीमन में पारिवारिक सुख-समृद्धि का भाव सबसे ऊपर होता है। महिलाओं को अपनों को ख़ुशी देकर ख़ुशी मिलती है। उनकी आस्था व्यक्तिगत ही नहीं, पारिवारिक बेहतरी से भी जुड़ी होती है। असल में देखा जाए तो महिलाओं की खुशियां अपने सुख में कम अपने परिवार की खुशहाली में ज्यादा बसी हैं। हरतालिका तीज के पर्व को उस पावन और समर्पित सोच का प्रतीक माना जाता है, जो महिलाएं अपनों के लिए अपने मन में रखती हैं। इस पर्व पर सपनों की खुशियों और घर-परिवार की बेहतरी के लिए मंगल कामना करती हैं। सुखद यह भी है कि रोज़मर्रा की भागदौड़ को भूल सज-संवर कर पूरे मान मनुहार के साथ इस मंगल उत्सव में भागीदार बनती हैं।
समर्पण की अभिव्यक्ति
हरितालिका तीज पर महिलाएं मिट्टी से शिव परिवार बनाकर उसकी पूजा करती हैं। इस कामना के साथ कि उनका दाम्पत्य जीवन भी शिव-गौरी की तरह आपसी स्नेह से सराबोर रहे। परिवार में अपनापन कायम रहे। मान्यता है कि कई सौ सालों बाद शिव से पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। शिवजी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। ‘हर’ भगवान शिव का ही एक नाम है। शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां पार्वती ने यह व्रत किया था। माना ये भी जाता है कि हरितालिका, हरित और तालिका शब्दों से बना है। हरित का मतलब हरण करना और तालिका यानी सखी। पार्वती की सखी उन्हें पिता के घर से हरण कर जंगल में ले गई थी। जहां उन्होंने शिव जी को पाने के लिए तप किया। इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका तीज रखा गया। वर्षा ऋतु की हरियल रुत में आने वाला शिव-पार्वती के दाम्पत्य की पूजा का पर्व, हरतालिका तीज प्रकृति का भी उत्सव है। हरियाली से भरी धरा पर उल्लास और उमंग के अनूठे रंग खिलते हैं। महिलाएं एकत्रित हो लोकगीत गाती हैं। रातभर जागरण करती हैं। सुहाग चिन्ह पहनकर शिव परिवार को पूजती हैं। अखंड सौभाग्य का वर मांगती हैं।