राखीगढ़ी की चिंता
सभ्यता के प्रतीकों का संरक्षण जरूरी
हिसार जिले में स्थित राखीगढ़ी में घुसते ही गंभीर लापरवाही दृष्टिगोचर होती है। यह हड़प्पा सभ्यता के समकालीन पुरातात्विक स्थल है, जो तकरीबन 550 एकड़ में विस्तारित और मोहनजोदड़ो से भी बड़ा है; भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने 1997 से 2000 के बीच की खुदाई में एक बहुत ही सुनियोजित शहर खोज निकाला, जो कि सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे पुराने साक्ष्यों वाला लगभग 5000 वर्ष पुराना शहर था। लेकिन दुर्भाग्य से राखीगढ़ी की खुदाई अभिशप्त ही रही। पहले उत्खनन व संरक्षण में धन के दुरुपयोग के आरोप, तत्पश्चात सीबीआई की जांच और उचित सुरक्षा न होने के कारण लोगों द्वारा यहां से कीमती सामानों की लूटपाट के चलते स्थल सुर्खियों में रहा। डेक्कन कॉलेज पुणे ने हरियाणा के पुरातत्व विभाग के साथ मिलकर 2013 से 2016 के बीच मनुष्यों व जानवरों के कंकाल प्राप्त किए। इन कंकालों के डीएनए अध्ययन से हमारे विकास के बारे में पता चल सकता है, यह भी कि यहां के निवासी आर्य थे, द्रविड़ थे, वैदिक थे या मिश्रित पूर्वजों की जाति यहां निवास करती थी। एक बहस की गुंजाइश कि भारत की सभ्यता व विज्ञान की क्षमता क्या थी।
पक्की सड़कों के सबूत, ड्रेनेज सिस्टम, टेराकोटा, ईंटें, ज्वेलरी, मूर्तियां, कीमती पत्थर व नग और जल संरक्षण की तकनीक सभी मिलकर गवाही देते हैं कि कांस्य युग में यहां के निवासी मिस्र और अन्य समकालीन सभ्यताओं से कहीं आगे थे। दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज इस खोए हुए शहर के उज्ज्वल इतिहास को प्राप्त करने के बाद भी संरक्षित नहीं किया गया। यहां तक कि 2012 में ग्लोबल हेरिटेज फंड द्वारा इसे एशिया के 10 सबसे असुरक्षित पुरातात्विक साइट में गिना गया। जबकि हमारे पूर्वजों की पहचान और उसके आधार पर विकसित होता हमारा भविष्य, इन सब का जवाब हमें इस साइट से मिल सकता है। परंतु सरकारी लापरवाही से हम अपने इतिहास को धीरे-धीरे खो रहे हैं। ऐसे हम अपनी अमूल्य ऐतिहासिक पहचान की कई अनमोल कडि़यां खो देंगे।