सिर्फ मसाला फिल्म है ‘बुलेट राजा’
फिल्म समीक्षा
उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर फिल्में बनाने में माहिर तिग्मांशू धूलिया एक बार फिर दर्शकों के लिए लेकर आए हैं बुलेट राजा। यूपी की बोली और गोली पर बनी ये फिल्म पूरी तरह एक मसाला मूवी है। इससे पहले तिग्मांशू पान सिंह तोमर, हासिल चरस, साहब बीबी और गैंगस्टर और साहब बीबी और गैंगस्टर रिटन्र्स बना चुके हैं। लेकिन तिग्मांशू ने न तो इस बार बायोपिक बनाई है और न ही किसी जमींदार घराने की कहानी दिखाई है। बल्कि बुलेट राजा में वह सीधे दबंग, सिंघम और राउडी राठौड़ जैसे चालू फार्मूले पर चलते दिखाई दे रहे हैं। यानी कहानी में दम नहीं, मगर धूम-धड़ाका भी कम नहीं। सैफ अली खान, सोनाक्षी सिन्हा, जिमी शेरगिल और विद्युत जामवाल की मुख्य भूमिकाओं से सजी बुलेट राजा में दर्शकों को सब कुछ मिलेगा, जो एक हिंदी फिल्म में होता है। गोलियों की बौछार, प्यार, तकरार, रोमांटिक गाने, जबल मीनिंग डायलॉग्स,आइटम सांग और भरपूर एक्शन।
दरअसल बुलेट राजा कहानी है राजा मिश्रा की जिसे हालात माफिया डॉन बना देते हैं। लेकिन वह हमेशा दूसरों की मदद करता है और इसीलिए लोग उसे पसंद भी करते हैं। अब अगर डॉन है, तो ज़ाहिर है कि उसका सियासी इस्तेमाल भी होगा। लिहाज़ा फिल्म में राजनीति का मसाला भी है। सोनाक्षी सिन्हा बंगाली लड़की है, जो कोलकाता से मुंबई केवल हीरोइन बनने के लिए घर से भागकर आती है और राजा उसके साथ है। फिल्म की कहानी सैफ अली खान के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन उसके दोस्त के रूप में जिमी ने रंग जमा दिया है और कमांडो के बाद विद्युत जामवाल फिर से बंदूक के साथ एक्शन सीन्स में जंचे हैं। सोनाक्षी के हिस्से ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन दबंग में काम करने का अनुभव उनके काम आ गया है। यानी गोलियों की बौछार तथा मार-धाड़ के बीच हीरोइन को कैसे अपनी पहचान बनानी है, उन्हें अच्छी तरह आता है। बुलेट राजा में भी उन्होंने अपनी भूमिका से दिखा दिया है कि वह बॉलीवुड में लंबी पारी खेलने का दम रखती हैं।
फिल्म में दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए -तमंचे पे डिस्को और माही गिल का आइटम सांग -डोंट टच माई बॉडी डाले गए हैं। संगीत साजिद- वाविद का है। वहीं गुलशन ग्रोवर और रवि किशन सहित राज बब्बर ने भी फिल्म में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। रही बात डायलॉग की तो क्षेत्रीय कहावतों का जमकर इस्तेमाल हुआ है। सैफ का ये डॉयलॉग दर्शकों को ज़रूर पंसद आ रहा है -भाई मरा है मेरा, बदला लेना तो परंपरा है, कोई कॉरपोरेट कल्चर नहीं है कि अगली डील में एडजस्ट कर लेंगे।
सैफ को चाहने वाले बुलेट राजा को एक बार तो देख सकते हैं। इस फिल्म के ज़रिए उन्होंने अपनी मेट्रो शहर वाली इमेज को तोडऩे की कोशिश की है। हालांकि यूपी का अंदाज़ अपनी आवाज़ में लाल पाना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ है, जिसकी वजह से कई बार उनका अंदाज काफी फनी लगता है। लेकिन यह कहा जाना चाहिए कि तिग्मांषू से यह उम्मीद नहीं थी। बुलेट राजा की अवधि 2 घंटे 18 मिनट है।
-धर्मपाल