Tribune
PT
About Us Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

मंत्रविमुग्ध करते शेखावाटी के भित्तिचित्र

डा. तारादत्त निर्विरोध शेखावाटी शिल्प और स्थापत्य कला का एक ऐसा आलेख है जिसका वर्णन  हमें भव्य और विशाल हवेलियों से साफ दिखाई देता है जो कलात्मक मंदिरों-मस्जिदों की बारीकियों में भी शब्दों के अर्थ की तरह समाए हुए है। राजस्थान के प्रसिद्ध करोड़पतियों की ये विशाल इमारतें उनकी कलाप्रियता दर्शाती हैं और साथ ही […]
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

डा. तारादत्त निर्विरोध

Advertisement

शेखावाटी शिल्प और स्थापत्य कला का एक ऐसा आलेख है जिसका वर्णन  हमें भव्य और विशाल हवेलियों से साफ दिखाई देता है जो कलात्मक मंदिरों-मस्जिदों की बारीकियों में भी शब्दों के अर्थ की तरह समाए हुए है। राजस्थान के प्रसिद्ध करोड़पतियों की ये विशाल इमारतें उनकी कलाप्रियता दर्शाती हैं और साथ ही बताती हैं कि प्रकृति रंगों के अभाव में शेखावाटीवासी मन के रंगों को वास्तुकला तथा चित्रकला में उतारने के लिए कितने लालायित थे। उनके कलाप्रेम की प्रतीक इन हवेलियों तक पहुंचकर सैलानी आश्चर्यचकित होकर स्थापत्य की शैली और शिल्पगत सौंदर्य  निहारते रह जाते हैं। नयनाभिराम छबियों की स्थापत्य कला के साथ शिल्प वैशिष्टï्ïय ने शेखावाटी को कला के संसार में प्रकाशमान किया है। भित्ति चित्रों के बेजोड़ नमूनों ने सैलानियों को आमंत्रित किया है और इमारतों के द्वारों के स्थापत्य ने अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
आज शेखावाटी हवेलियों और उन पर अंकित अनूठे भित्ति चित्रकला के कारण देश-विदेश के पर्यटकों का विशेष केंद्र है। आए दिन यहां अमेरिका, जापान, स्विट्जरलैंड और अन्य 30 देशों के पर्यटक दल कहीं कुछ तलाशते न•ार आते हैं। ये बड़ी देर तक हवेलियों के अंतरंग और बहिरंग की यात्राओं में खोए हुए-से रहते हैं।
राजस्थान में शेखावाटी  जनपद के नवलगढ़, चिड़ावा, पिलानी, झुंझुनू और फतेहगढ़ ऐसी आकर्षक हवेलियों के प्रमुख केंद्र हैं। नवलगढ़, रामगढ़ एवं मंडावा की हवेलियां पर्यटकों के पड़ाव हैं। वे दिल्ली से जयपुर या बीकानेर की यात्रा के दौरान सीकर, झुंझुनू और चुरू इस मोह से जुड़कर चले आते हैं कि कई शासकों के बदलने के बावजूद शेखावाटी अंचल की खूबियों में कोई अंतर नहीं आया है।
राजस्थान के उत्तर-पश्चिम छौर पर स्थित झुंझुनू जिला शेखावाटी की हृदयस्थली है। यहां की हवेलियों ने पर्यटन विकास को विस्तार दिया है। रूप निवास कोठी नवलगढ़, मंडावा का गढ़,डूंडलोद का गढ़ एवं झुंझुनू में ‘होटल शिव शेखावाटी’ पर्यटकों की आधुनिकतम सुविधाओं से युक्त होटल हैं जहां शेखावाटी गाइड भी हैं। आज शेखावाटी पर्यटकों का अंतर्राष्ट्रीय स्थल है और यहां का लोकजीवन, ऐतिहासिक एवं प्राचीन स्थल, संस्कृति तथा कला  पक्ष आकर्षण के विशेष कारण हैं। लोक रीति-रिवाजों, पर्वों और देवी-देवताओं और मांगलिक संस्कारों के भित्तिचित्र हवेलियों पर चित्रित और शेखावाटी संस्कृति के परिचायक हैं। उनमें लोक कलात्मक चित्रों की बहुलता है। अधिकांश चित्र आकृतिमूलक, धार्मिक, विष्णु अवतारों के युद्ध शिकार, बारात और काम  सूत्र आदि के हैं। इनमें रामायणकालीन प्रसंगों, महाभारत के संदर्भों, संगीत की राग-रागनियों और प्रेम के चित्र कम संख्या में नहीं हैं। सभी रंगों की छटा निराली है और चित्रों में स्वदेशी रंगों का प्रयोग किया गया है तथा पक्का रंग होने से वे आज भी चमक देते हैं। नवलगढ़ की हवेलियों की भित्तियों पर बारहमासे का भी खूबसूरत चित्रांकन मिलता है। इनमें मध्यकालीन एवं रीतिकालीन मनोहारी कार्यकलाप और रंग-रोगन राजस्थानी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किये गये हैं। कुछ हवेलियों पर देवताओं के चित्र बने हैं तो कुछेक पर विवाह संबंधी। इन चित्रों के साथ लोकपरक शैली और शृंगारिकता के भी चित्र हैं। भित्तिचित्रों के पीछे कलाकारों की निजी दृष्टिï ही रही है अन्यथा इन चित्रों में लोकानुरंजन के लिए विशेष कुछ नहीं रह जाता है। चित्रकारी का उद्देश्य भारतीय संस्कृति को अक्षुण्य बनाये रखना है। शेखावाटी के किसी भी शहर, कस्बे या गांव की इमारतों में भित्तिचित्रों को देखा जा सकता है।
कला के क्षेत्र में शेखावाटी में चित्रकला एवं भित्तिचित्र कला का काम बड़े पैमाने पर किया गया है। नवलगढ़ में कलात्मक बुर्ज हैं जहां जयपुर एवं नवलगढ़ के नक्शे और भित्तिचित्र उपलब्ध हैं। स्थिति यह है कि सन्1947 से पूर्व निर्मित प्राय: सभी हवेलियों में  कला संसार सुरक्षित है। नवलगढ़ में 19वीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध के करीब 400 चित्र सुरक्षित हैं और उत्तराद्र्ध के एक हजार चित्र ऐसे हैं जिनमें लोकजीवन रचा-बसा है। शेखावाटी में नवलगढ़ की हवेलियां बोलती- बतियाती हैं, मंडावा की मौन-मुखरित है तो रामगढ़ की हवेलियां एकांतजीवी हैं और उनकी कलात्मकता किसी से छिपी नहीं है। चुरू, झुंझुनू और फतेहपुर की हवेलियों-छतरियों की खूबियों को फिल्माया भी गया है। महनसर की हवेलियों की संधि रेखाएं भी पहचानी जा सकती हैं और दूसरी हवेलियों के ओर-छोर बूझे जा सकते हैं।
नवलगढ़ करोड़पतियों की जन्मस्थली है। कभी इसे स्वर्ण नगरी कहा जाता था। वहां वैभव की प्रतीक हवेलियां अपने मालिकों की औद्योगिक प्रगति की कथाएं दोहराती हैं। वर्षों पुरानी ये हवेलियां आज भी नयी-सी हैं। मोटे तौर पर छावछरिया, जालान,जयपुरिया, पाटेदिया, पोद्दार, बासोतिया, बिड़ला, भगत, भगेरिया, मानसिंहका, मोर, सेक्सरिया आदि वंशजों ने नवलगढ़ कस्बे को विकसित किया है और  उन्हीं की हवेलियों में आंचलिक चित्रकारी है।
गोविंदराम सेक्सरिया की हवेली में पांच विशाल चौक, 45 फुट की बड़ी बैठकें, पचास कक्ष, हालनुमा दो तहखाने कलात्मक बरामदे और बारीकियों के कामों से युक्त जालियां हैं। लगभग 70 साल पहले बनी इस इमारत में रघुनाथगढ़ के  पत्थरों का उपयोग किया गया है और अनेक स्थल संगमरमर के पत्थरों से बने हैं। हवेली में चौक के भीतरी चौक और कमरों से जुड़े कई-कई कमरे हैं जिनके द्वार चौखटें भी कलात्मक हैं।
भगतों की हवेली  नब्बे वर्ष पुरानी है, लेकिन नवलगढ़ में इससे बड़ी दूसरी हवेली नहीं है। बड़े दरवाजों के रूप में  पहचानी जाने वाली इस हवेली में दो चौक और पचास से भी अधिक कमरे एवं तीन ओर बगीचे बने हैं, किन्तु इन दिनों ये जर्जर अवस्था में हैं। एक अनुमान के अनुसार कस्बे की सभी हवेलियां साढ़े तीन सौ साल से ज्यादा पुरानी नहीं हैं। मानसिंहका की हवेली 200 वर्ष पुरानी है, किन्तु उसके चित्र धुंधलाए नहीं हैं। पूर्णतया चित्रांकित चोखाणी की हवेली के दरवाजों की शीशम की चौखटों पर किये गये बारीक कलात्मक कार्यों को देखकर कोई उसे पुरानी  संज्ञा नहीं दे सकता। जयपुरियों और पाटोदियों की हवेलियां आधुनिक स्थापत्य की प्रतीक हैं और सरावगियों की हवेली इससे भी पहले की है। छावछरियों एवं पोद्दारों की हवेलियां डेढ़ सौ से पौने दो सौ वर्षों के आसपास की हैं। हर ओर हवेलियां ही हवेलियां, खुर्रेदार चबूतरों की हवेलियां। रिंगसियों की हवेली के आसपास की भित्तियां भी चित्रांकित हैं तो डीडवानियों की हवेलियां पुरानी और प्रसिद्ध। नवलगढ़ की हवेलियों की विशेषता यह है कि सभी के सामने  एक ऊंचा खुर्रा बना है, जिन पर ब्याह-शादियों के समय हाथी भी चढ़ जाया करते थे। केवल डीडवानियों की हवेली रामगढ़-शेखावाटी की हवेलियों की डिजाइन पर है जहां खुर्रा नहीं, सीढिय़ां हैं।
डूंडलोद में गोइन्का हवेली ‘खुर्रेदार हवेली’ के नाम से प्रसिद्ध है जो अब कलात्मक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित की जा रही है। इस हवेली के अंतरंग में  श्रीकृष्णकालीन रासलीलाएं बखूबी चित्रांकित हैं। हवेली का लंबा खुर्रा पर्यटकों को काफी पसंद आता है। फतेहगढ़-शेखावाटी में नंदलाल देबड़ा, कन्हैयालाल गोयनका, नेमीचंद चौधरी एवं सिंघानियों की हवेलियां बड़ी इमारतें हैं। महनसर में सेवराम पोद्दारों की हवेली की सोने-चांदी की दुकान, पोद्दारों की छतरियां एवं गढ़ भव्य इमारतें हैं तो बिसाऊ में सीताराम सिगतिया की हवेेली और पोद्दारों की हवेली स्थाप्त्य की पहचान हैं।
रामगढ़-शेखावाटी में रामगोपाल पोद्दार की भव्य हवेली में रामकालीन कला चित्रांकित है। घनश्यामदास पोद्दार की हवेली आकर्षक और कलात्मक हैं तो ताराचंद रूइया, रामनारायण खेमका की हवेलियों के  भी अपने आकर्षण हैं। शनिचरजी का मंदिर भी कलात्मक है।
झुंझुनू में टीबड़े वालों की हवेली, खेतड़ी महल एवं ईसरदास मोदी की सैकड़ों खिड़कियों वाली हवेली भव्य इमारतें हैं। मंडावा में सागरमल लडिया की हवेली, रामदेव चौखानी की हवेली, मोहनलाल नेवटिया की हवेली, रामनाथ गोयनका की  हवेली, हरी प्रसाद ढढारिया की हवेली, विश्वनाथ गोयनका की हवेली, सुधमल मोहनलाल गोयनका की हवेली स्थापत्य और  शिल्प की दृष्टिï से प्रसिद्ध हैं। चूड़ी में बनी शिवप्रसाद नेमाणी की हवेली भी अपनी कलात्मकता का परिचय देती है जहां के शिवालय की छतरी में श्रीकृष्णकालीन रामलीलाएं संगमरमरी प्रस्तरों पर उत्कीर्ण हैं।
चुरू में मालजी का कमरा  और हवामहल, रामविलास गोयनका की हवेली, मंत्रियों की बड़ी हवेली और कन्हैयालाल बगला की हवेली दर्शनीय हैं। सीकर जिले में रींगस से 16 किमी दूरस्थ सड़क मार्ग से जुड़े खाटू श्यामजी के मंदिर की छतरियों के स्थापत्य भी प्रभावित करते हैं। वहां गोरिया ग्राम से 16 किमी दूर शक्तिपीठ जीणमाता का दसवीं शताब्दी में निर्मित भव्य मंदिर अरावली की उपत्यका में है, जिसके सामने पंक्तिबद्ध धर्मशालाएं हैं। सीकर से 60 किमी सीकर-उदयपुरवाटी सड़क मार्ग पर शक्तिपीठ शाकंभरी मंदिर की प्राचीनता भी दृष्टïव्य है।
शेखावाटी में स्थापत्य के विकास के पीछे प्रवासी राजस्थानियों की गांव को कुछ देने की समर्पित भावना जरूर रही है और इस दिशा में वे आज भी जागरूक हैं।
देश-विदेश से शेखावाटी राजस्थान आने वाले पर्यटकों की बढ़ती हुई संख्या ने इस अंचल को विश्व के पार-ïद्वार तक प्रसिद्ध और चर्चित किया है। हवेलियों एवं भित्तिचित्रों के लिए सब कहीं पहचानी जाने वाली शेखावाटी को देखकर विदेशी आंखों ने सिद्ध कर दिया है कि यहां बहुत कुछ तलाशा जा सकता है। विदेशी लेखक भी यहां की कला एवं संस्कृति से काफी प्रभावित रहे हैं और उनका मानना है कि यदि इन भित्तिचित्रों को प्रकाश में लाया जाए तो न केवल उनसे विदेशी पर्यटक आकृष्टï होंगे बल्कि उनका समुचित संरक्षण भी हो सकेगा।
होटल-संस्कृति की महत्ता को सबसे पहले मण्डावा ठाकुर ने अनुभवा, जब उनसे मिलने एक शाम फ्रांसिस बेइजिंग राजनयिक और पत्रकार अमननाथ मण्डावा आए और उन्होंने किले को ट्यूरिस्ट होटल बनाये  जाने का सुझाव दिया। दोनों  ही कला व पर्यटन के लेखक थे और शेखावाटी की भित्तिचित्र कला से काफी प्रभावित थे। मण्डावा होटल 1978 में प्रारंभ किया गया और ‘फ्रीडम एट मिड नाइट’ के लेखक डोमनीक लेप्यारे पहला पर्यटक दल लेकर यहां आये। वे मण्डावा की हवेलियों , चित्रों और नागरिकों के स्वागत-सत्कार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने पेरिस में ‘ट्रेवल एजेंट्स’ की प्रेस कांफ्रेंस की और उन्हें मण्डावा-शेखावाटी संबंधी जानकारी दी।
मण्डावा होटल को राजस्थानी-संस्कृति के अनुरूप परम्परागत स्वरूप प्रदान करने और वहां यूरोपियन खाने के साथ राजस्थानी व्यंजनों की भी व्यवस्था की गयी तो पर्यटकों का तांता-सा लग गया। पैंतीस कमरों के इस होटल में पर्यटकों की सुविधाओं को ध्यान में रखा गया तो वे आने और ठहरने लगे, लेकिन इन गढ़ों और कोठियों में ठहरकर विदेशी पर्यटकों का रूप शाही मेहमानों जैसा ही रहा और वे गांव- कस्बों में आकर भी लोकजीवन के अधिक निकट नहीं आए। उन्होंने ऊंटों की सवारी की, उनके सम्मान में नृत्यादि भी हुए और उन्हें जुलूस के साथ हाथी-घोड़ों पर भी लाया गया, फिर भी वे गढ़ों तक ही रहे। ऐसी स्थिति में ऐसे होटल की कल्पना की गयी जो शहर के खुले में हो, आधुनिक आवश्यक सुविधाओं से युक्त हो और जहां आकर पर्यटक अपने को पूर्णत: स्वच्छंद कर सकें।

Advertisement
×